07 अगस्त, 2013

जीवन सुनहरी धूप सा


जीवन सुनहरी धूप सा
हरीतिमा पर छाता जाता
त्याग और समर्पण की
सौगात साथ में लाता |
साथ यदि इनका ना होता
वह अकारथ हो जाता
सदा असफल रहता
आत्म विश्वास न जग पाता |
माँ की ममता ,पिता का प्यार
होते सदा निस्वार्थ
वह त्याग ही तो है इनका
जो संतति  को सक्षम बना
सफलता का मार्ग दिखाता |
भाव समर्पण का
प्रवल प्रभाव अपना छोड़ता
इसके वश में हो कर
पाषाण ह्रदय भी
मोम सा कोमल हो जाता
उमंग से भरता जाता |
उसी की तरंग में
 जाने कितने रूप धरता
रंग रंगीली खुशियाँ लाता
जीवन सवरता जाता |
फिर जाने कब
बुझती मशाल सा मानव
धुंआ धुंआ हो जाता
ना जाने कहाँ
विलुप्त हो जाता |
जिन्दगी वह सुनहरी धूप है
जब आती है बहुत खुशी देती है
जब जाती है
बहुत उदास कर जाती है |
आशा



16 टिप्‍पणियां:

  1. जिन्दगी वह सुनहरी धूप है
    जब आती है बहुत खुशी देती है
    जब जाती है
    बहुत उदास कर जाती है |

    ....सच...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...

    जवाब देंहटाएं
  2. बुझती मशाल सा मानव
    धुंआ धुंआ हो जाता
    ना जाने कहाँ
    विलुप्त हो जाता |
    जिन्दगी वह सुनहरी धूप है
    जब आती है बहुत खुशी देती है
    जब जाती है
    बहुत उदास कर जाती है |--
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    latest post नेताजी सुनिए !!!
    latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

    जवाब देंहटाएं
  3. दार्शनिकता से ओतप्रोत बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति ! यही हर जीवन का सत्य है ! बहुत बढ़िया !

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

    जवाब देंहटाएं
  5. दोनों स्थितियाँ अपने अनुभव दे जायेंगी - छुटकारा नहीं .

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: