03 फ़रवरी, 2017

रंग मौसमी




हरी भरी धरती पर
पीले पुष्पों से लदे वृक्ष
जल में से झांकती 
उनकी छाया
हिलती डुलती बेचैन दीखती
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती
तभी पत्थर सट कर उससे
यह कहते नजर आते
हमें कम न आंको
हम भी तुम्हारे साथ हैं
आगया है वासंती मौसम
उस के रंग में सभी रंग गए
फिर हम ही क्यूं पीछे रह जाते 
हम भी रंगे तुम्हारे रंग में
जब पर्वत तक न रहे अछूते
दूर से धानी दीखते
फिर हम कैसे पीछे रह जाते |
आशा


31 जनवरी, 2017

गर्दिश में


गर्दिश में जब हों सितारे
ऊंचाई छूने नहीं देते
जब भी रंगीनियाँ खोजो
उपभोग करने नहीं देते |
मन मसोस रह जाना पड़ता
भाग्य को मोहरा बना कर
कोसना ही शेष रहता
मन मलिन होने लगता |
गर्दिश के दिन कब हों समाप्त
सोच सोच विचलित वह होता
आते जाते गर्दिश के दिनों पर
वह पशेमान होता |
आशा

30 जनवरी, 2017

तब और अब



जाने कितनी बार 
थिरके मुरली की धुन पर 
पर वह बात न देखी 
जो थी माधव की मुरली में |
उस मधुर धुन पर नर्तन 
राधा रानी के साथ में 
मन मोह लिए जाती 
जीवन में गति आ जाती |
पहले था पारद धातु सा जीवन 
यहाँ वहां लुढ़कता था 
स्थिर नहीं हो रह पाता था 
पर अब कुछ परिवर्तन तो आया |
है यह कैसा स्वभाव उसका
चंचल उसे बना गया
मनमानी वह करता
स्थिर कभी न हो पाता  |
मोहन को धेनु चराते देखा
काली कमली ओढ़ कर
गौ धूलि बेला में
उन्हें धुल धूसरित आते देखा |
अब वह बातें कहाँ रहीं
गाएं अकेले आती जाती हैं
खुद को असुरक्षित पाती हैं
मोहन की हांक  बिना |
आशा





25 जनवरी, 2017

तिरंगा हमारा


तिरंगा हमारा देख कर
हुआ उन्नत भाल
मन ही मन उत्फुल्ल हुआ
नहीं जिसकी मिसाल |
तिरंगे की छाँव तले
देश ने एक स्वप्न सजाया
जिस को पूर्ण करने के लिए
कर्मठता का दामन थामा|
यही उसे आगे बढ़ाती
देश को अग्रणी बनाती
अपनी ऊर्जा से देश को
नया रूप देना चाहती |
तिरंगे के तीन रंग
अपने आप में पूर्ण
भगुआ रंग जोश भरता
सारे कार्य सफल करता |
श्वेत रंग शान्ति का द्योतक 
समृद्धि का हरा रंग परिचायक
चक्र बताता विविधता में एकता
देख देख मन न भरता |
भारत माता की जय बोलता
बार बार दोहराता
कर्मठता की राह पर चलता
खुद को धन्य समझता |
आशा



23 जनवरी, 2017

नाराजगी


न जाने क्यों
आज सुबह से है
नाराज बिटिया
मना मना कर
थक गई हूँ
पर कर रही मुझे
नजर अंदाज गुड़िया
अरे जरासा मुस्कुरा दोगी
तो क्या होगा
दुर्बल तो न हो जाओगी
मेरा खून अवश्य
बढ़ जाएगा
तुम्हारी मुस्कान देख
भगा दो यह क्रोध
अपनी निगाहों से
बचपन में यह
अच्छा नहीं लगता
प्यार से अपनी बाहें
मेरे गले में डालो
मैं निहाल हो जाऊंगी
तुम पर वारी जाऊंगी |
आशा



21 जनवरी, 2017

है कौन


आप जब भी करीब आए
एहसास अनोखे जागे
पर एतवार नहीं होता
वे सत्य हैं या छद्म रूप
जान जाइए
कभी सत्य नजर आते
कभी विचारों में बिलमाते
है ममता प्यार या दिखावा
या ओढ़ा हुआ आवरण विशेष
पहचान जाइए
है ऐसा क्या उसमें
नजदीकी ही बताएगी
जब पूर्ण आकलन हो
आभास से ही उसको
जानने का जज्बा हो
तभी जान पाएंगे
उसे पहचान पाएंगे
है शबनम में भीगा गुलाब
आज में उसे जानते हैं
मन में ही सही
उसे जान जाइए
पहचान जाइए |
आशा

19 जनवरी, 2017

तनाव




निगाहें उसकी
तरस गईं
तेरी एक झलक
 पाने को
दरवाजा तक
खुल गया है
वीराने में
बहार आजाने को
अब देर क्या है
होगा तुझे ही पता
क्या रखा है
इसा तरह
उसको तरसाने में
एहसास प्यार का
ले आया उसे
तुझ तक
जब तुझसे
दूरी हुई
जिन्दगी सराबोर हुई
तेरी यादों में
सिमट कर
उनमें ही
डूबी रहती है
बाक़ी सब को
भूल गई
यह अन्याय नही
तो और क्या है 
तुझसे दूरिया उसकी 
सजा नहीं तो क्या है 
प्यार में कटुता
 कहाँ से आई है
हम ठहरे गैर 
नहीं जानते 
आखिर क्या
 चल रहा है 
दौनों में 
हम से यदि 
सांझा किया होता 
शायद कुछ
सहज हो पाते 
तनाव से होते दूर 
अपना प्यार बाँट पाते |
आशा