26 जून, 2015

भास् मित्रता का

 मित्र के लिए चित्र परिणाम
है कितना आवश्यक
ऐसा कुछ करना
रिश्ते सुरक्षित रखना
उन्हे प्रगाढ़ करना |
इतनी सी बात
समझ न पाए यदि
क्या लाभ मनुष्य होने का
अपने वजूद पर गर्व करने का |
सम्बन्ध मधुर
जीवन में रस घोलते
कठिन से कठिन प्रश्न
चुटकियों में हल होते |
यही तो होती देन
मित्रता रखने की
सच्चा मित्र परखने की 

उसे यादगार बनाने की |
रिश्ते दरक नहीं पाएं 

दंशों से उन्हें बचाएं
  पालें पोसें 

परिपक्व  करें |
एक छायादार वृक्ष
जब फले फूलेगा
अप्रतिम अहसास होगा
मित्रता का भास् होगा |
आशा

24 जून, 2015

जुनून

sansaar anokhaa swapnon kaa के लिए चित्र परिणाम
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स्वप्न था या सत्य था
सोचने का ना वक्त था
फिर भी खोया स्वप्नों में
जूनून नहीं तो और क्या था
पलकों से द्वार किये बंद
दस्तक पर भी अवधान न था
पर वे बेझिझक आये
बिना द्वार खटखटाए
यह मन का भरम नहीं
तो और क्या था
एक पल भी न ठहरा
दृश्य बदल गया
मन से वह तब भी न गया
यह ख्याल था या जुनून था |

जागती आँखे देखती उसे 
कभी समक्ष न होता 
पलक बंद करते ही 
फिर जीवंत होता 
यही खेल दिन भर के लिए 
व्यस्तता का सबब होता 
एक अनूठा अनुभव होता 
तभी संशय मन में होता  
इसे क्या कहा जाए 
स्वप्न या उसका जूनून |



आशा

22 जून, 2015

वह मेरा नहीं था


ए दिल मुझे बता 
क्या तू मेरा  ही था
जिस के लिए  धड़कता रहा 
वह तो मेरा न था  |
उसने कभी चाहा न था 
प्रेम से बुलाया न था
वह भटका हुआ राही था
फिर भी तू धड़का |
यह तेरा कैसा न्याय 
बेगाने पर एतवार 
पल भर तो ठहरता 
मुझसे पूंछ लिया होता |
पीछे से तूने वार किया 
मुझे  अब तुझ पर भी
एतवार  न रहा 
यह तूने क्या किया |
है अब भी यही सोच तेरा 
कुछ भी गलत नहीं था 
तब मेरा मौन ही है उचित
क्या लाभ  प्रतिक्रया का |
फिर भी यही रहा मन में 
तूने उसे अपनाया 
जो भूल गया सच्चाई   को 
 कभी तो  मेरा  था |
आशा





21 जून, 2015

वर्षा का आनंद

 जल बरसा हरियाली छाई के लिए चित्र परिणाम
छाई घनघोर घटा  आज 
बादलों ने की गर्जन तर्जन 
किया स्वागत वर्षा  ऋतु का 
नन्हीं जल की बूंदों से |
धरती ने समेटा बाहों में 
उन नन्हें जल कणों को 
आशीष दिया भरपूर उन्हें 
सूखी दरारें मन की भरने पर |
नदी नाले हुए प्रसन्न 
देख बादल  बर्षा आगमन 
बढ़ने लगा जल  स्तर
उनके मन का उत्साह देख |
कृषकों का हर्ष देखना मुश्किल 
अपूर्व सुख का आकलन कठिन
वे सोये नहीं हुए  हुए व्यस्त 
खेतों को ठीक कर बौनी की तैयारी में |
आम आदमी अपनी खुशी 
कैसे जताए सोचता
पिकनिक पर जाने का मन बना
वर्षा का आनंद उठाता |
आशा





19 जून, 2015

मेरे बाबूजी



Akanksha
भ्रम बज्र का होता था
   पर दिल मॉम का रखते थे
कष्ट किसी का देख न पाते
दुःख में सदा साथ होते थे |
छोटा सा पुरूस्कार हमें  मिलता 
उन्नत सर गर्व से उनका  होता था
पर यदि हार मिलती 
एक कटु शब्द भी न कहते |
 कठोर बने रहते
बाहर से नारियल से
पर मन होता अन्दर से नर्म
उसकी गिरी सा |
आज भी याद आती है
जब उंगली पकड़ चलना सिखाया था
 गिरने पर रोने न दिया था
सर उठा चलना सिखाया था |
जब सामना कठिनाइयों का हुआ
वही हौसला काम आया
अपनी किसी असफलता पर
कभी भी आंसू न बहाया |
वह छिपा प्यार दुलार
 कभी व्यक्त यूं तो न किया  
कठिनाई में जब खुद को पाया
संबल उनका ही पाया  |
अनुशासन कठोर सदा  रखा
नियमों का पालन सिखाया
तभी तो आज हम
 हुए सफल जीवन में |
आज जो भी हम हैं
उनके  कारण  ही बन  पाए
सफलता की कुंजी जो मिली
वही उसके जनक थे |
बिना  उनके  हम कुछ न बन  पाते
पल पल में हर मुश्किल क्षण में 
वरद हस्त रहता था  उनका
उन्हें हमारा  शत शत नमन  |
आशा