16 जून, 2015

सोच विद्यार्थी का


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था  प्रथम दिवस शाला का
उत्साह की सीमा न थी
नया बस्ता नई पुस्तकें 
खोलने की जल्दी थी |
नए गणवेश में सजे  थे
नया लंच बॉक्स भी लिए थे
खुशी का ठिकाना न था
नई कक्षा में जाना था |
फिर भी मिल ही गए
यहाँ भी नए पुराने मित्र
बातों का सिलसिला
थमने का नाम न लेता था |
घंटी की आवाज  सुनी 
टूटी तंद्रा पहुचे प्रार्थना कक्ष में
वही उद्बोधन घिसापिटा
सुनते सुनते  उकताने लगे |
सोचा जब सभी कुछ नया था
फिर भाषण पुराना क्यूं
कल से फिर वही शिक्षक होंगे
वही कक्षा कार्य वही डांट |
क्या कोई तरीका नहीं है
नए  ढंग से अध्यन का   
हर क्षेत्र में परिवर्तन दीखते
फिर शिक्षा में क्यूं नहीं ?
आशा

15 जून, 2015

वह प्यार |



तेरा वह प्यार
नयनों का वार
कजरे की धार
होता दिल के पार |
फूल का वार
या चुभता खार
सरहद के पार
है वह खुद्दार |
है तलवार की धार
ना उसे मार
नहीं वह भार
है पहला प्यार |
आशा

14 जून, 2015

है कितना अंतर


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                                                                                           है कितना अंतर 
कल और आज के सोच में
गहरी खाई हो गई है
विचारों में |
आज भी  याद आते है वे लम्हें
जब होते थे बाबा  दादी के साथ
नाना नानी मामा मामी से
कितना प्यार मिलता था
बता नहीं पाते शब्दों में |
अच्छा लगता था उनकी सेवा करना
कहानी सुनना
नई नई फरमाइश करना |
वह अपनापन वह ममता अब कहाँ
संवेदना के अभाव में
बोझ नजर आते हैं
घर  भी यदि  आते हैं |
अपने आगे और कोई कुछ नहीं
बिना मतलब सम्बन्ध नहीं
सारी अक्ल समाई है
आज की सोच में |
वह सम्मान वृद्धों को मिले
कल्पनातीत लगता है आज
 जिसकी अपेक्षा होती है
उन्हें  इस उम्र में |
 मान सम्मान तो दूर रहा
घर के एक कौने में भी  जगह नहीं
वृद्धाश्रम खोजे जाते बोझ टालने को  
अब भार हो कर रह गए है |
 भौतिकता वादी  इस युग में 
रिश्तों की गरिमा खो गई है 
अपने सुख दुःख जानते हैं 
वृद्धों के कष्ट  भूल गए हैं |

आशा