06 दिसंबर, 2014

आदत सी हो गई है



रंग जिन्दगी के
सम्हलने नहीं देते
 बवाक हो जाते
प्यार के अफसाने
जब शाम उतर आती
आँगन के कौने में
रहा था  धूप से
 कभी गहरा नाता
व्यस्तता का आवरण
तब लगता था अच्छा
पर  अब सह नहीं पाती
रंगों की चहल कदमी
रहती सदा तलाश
तेरी छत्र छाया की
तभी तो सुरमई शाम
लगती बहुत प्यारी
तन्हाँ आँगन के कोने में
मूंज की खाट पर
बैठ कर बुनना और
गिरते फंदों कोउठा
 सलाई पर चढाना 
अपनी कृति पर खुश होना 
हलकी सी आहट पर 
झांक तुम्हारी राह देखना
अब आदत सी हो गई है
इस तरह जीने की
समय बिताने की |
आशा

05 दिसंबर, 2014

सर्दी में


निष्ठुर लोग
असहनीय ठण्ड
जगह न दी

रात जाड़े की
इंतज़ार ट्रेन का
कम्पित तन |

दया न माया
कांपता रह गया
दुखित मन |

खुले बदन
ठंडी जमीन पर
सो रहा था |

बर्फीली हवा
वह सह न सका
आगई कज़ा |

ऋतु जाड़े की
महका है चमन
तेरे आने से |

ठंडी बयार
कपकपाता गात
जाड़ा लगता |
आशा

03 दिसंबर, 2014

बालक मन चंचल स्थिर न रहता

सात रंग में सजा इंद्रधनुष
वर्षा ऋतू में
दिशा खोजता विपरीत सूर्य के
 इंद्र धनुष
प्रमुख पांच वर्चस्व रंगों का ही
इंद्र धनुष में
 बहता जल कलकल निनाद 
चंचल मन 
मन मयूर नाचता थिरकता 
खुशियाँ लाता 
पा अपनों को  मन ममतामय
प्यार जताता 
पंखी सा मन पंख फैला उड़ता
चाँद चाहता 
किया प्रयास असफलता हाथ 
मन उदास 
बंधक मन तन के पिंजरे में
कैसी आजादी 
कही कहानी याद आई पुरानी 
लगी सुहानी 
चाचा नेहरू बाल मन में बसे 
यादों में रहे 
मन मोहती शीशे मैं से झांकती
 तेरी मुसकान
बालक मन जैसे निर्मल जल
प्यारा लगता |



01 दिसंबर, 2014

बंधन अटूट



प्रेम की मिसाल थे
बंधन अटूट दौनों का
दो जिस्म एक जान
 हुआ करते थे  
हल्का सा दर्द भी
 सह न पाते थे
अलगाव से
 बेहाल होते 
यही तो कुछ था  भिन्न
सबसे अलग
  सबसे जुदा
गम जुदाई 
सह न पाते 
मरणासन्न से हो जाते
सदा साथ  रहते देखा
   कुदृष्टि  पड़ गई किसी की
जीवन में विष घुला
सारी शान्ति हर ले गया
जीवन निरर्थक लगा
प्रेम की चिड़िया
 कूच कर गई 
एक की इहलीला 
समाप्त हो गई 
हादसा सह  नहीं पाया 
खुद की जान से गया
और घरौंदा खाली हुआ
क्या सच्चा प्यार
 यही कहलाता
विचारों पर हावी हुआ |
आशा

30 नवंबर, 2014

निर्विकार



है निरीह
 निर्विकार आत्मा
बंधक है
 तन के पिंजरे में
पञ्च तत्व से
 निर्मित है जो
आसान नहीं उसे छोड़ना
है बैचैन बहुत   
तोड़ना चाहती समस्त बंधन
है बेकरार उन्मुक्त होने को
नहीं चाहती कोइ बाधा
चाहती मुक्ति
तन के पिंजरे से |
एक ही है लक्ष्य
बंधन रहित उन्मुक्त जीवन
वादा  चाहती परब्रह्म से
किये अनगिनत प्रयास
कोई तो सफल हो
परमात्मा की दृष्टि पड़े
 और वह मुक्त हो |
आशा