15 अगस्त, 2014

पीड़ा

जीवन के अहम् मोड़ पर 
लिए मन में दुविधाएंअनेक 
सौन्दर्य प्रेम में पूरी  डूबी
सूरत सीरत खोज रही |
एक विचार एक कल्पना
 जिससे बाहर ना आ पाती
डूबती उतराती उसी में
कल्पना की मूरत खोजती |
उसका वर कैसा हो 
किसी ने जानना न चाहा 
पैसा प्रधान समाज ने 
उसे पहचानना नहीं चाहा |
कहने को उत्थान हुआ 
नारी  का महत्त्व बढ़ गया 
पर इतने अहम मुद्दे पर 
उससे पूछा तक न गया  |
विवाह उसे करना था 
निर्णय लिया परिवार ने 
सारे अरमान जल गए 
हवनकुंड की अग्नि में |
नया घर नया परिवेश 
धनधान्य की कमीं न थी 
पर वर ऐसा न पाया 
जिसकी कल्पना की थी |
भारत में जन्मीं थी 
संस्कारों से बंधी थी 
धीरे धीरे  रच बस गई 
ससुराल के संसार में |
कभी कभी मन में 
एक हूक सी उठती 
प्रश्न सन्मुख होता 
क्या यही कल्पना थी |
अब मन ने नई उड़ान भरी 
हुई व्यस्त सृजन करने में 
खोजती सौन्दर्य अपने कृतित्व में 
हुई सम्पूर्ण खुद ही में |
आशा







13 अगस्त, 2014

राष्ट्रीय पर्व(हाईकू )




अब 24 घंटे लहरायेगा तिरंगा



हुए स्वतंत्र
मन वचन कर्म
आज के दिन |

राष्ट्रीय पर्व
है पंद्रह अगस्त
मन प्रफुल्ल |


स्वागत गीत
लय मधुर धुन
आज के दिन |


उमंग भरा 
है यह महोत्सव
सब के लिए |


राष्ट्रीय पर्व
खुश जन मानस
अनोखा पर्व |

झंडा तिरंगा
है शान हमारा
आसमाँ छूता |

बालक वृन्द
भरे हैं उत्साह से
आज के दिन |

नहीं अकेली
संग सखी सहेली
पतंग उड़ी |

रंग बिरंगी
आसमाँ में पतंग
अनूठी लगी |

आशा

11 अगस्त, 2014

बंधन

बंधन ऐसा 
अटूट होता  जाता 
जब प्यार हो |
भूखा है मन 
तरसता पाने को 
नव जीवन |
मिले चाहत
 है यत्न आवश्यक 
हारना नहीं |
राह दुर्गम 
पहुँचना कठिन 
कर प्रयत्न |
रुकना नहीं
आगे बढ़ते जाना
हारना नहीं |

कच्चा है धागा
पर ग्रंथि अपूर्व
बहना ने दी |

उसकी दुआ
राखी मीठी मिठाई
भाई ने पाई |



आशा


08 अगस्त, 2014

रक्षाबंधन

  •                                                                    
  •  
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  •  
  •  
  •   आज न जाने क्यूं  
  • उदास हुई जाती हूँ  
नहीं  रहा  उत्साह पहले सा
रक्षा बंधन मनाने का |
बाजार में सजी राखी की
 दूकानों पर  भीड़ देखी
कुछ क्षण  के लिए
 कदम  भी ठिठके |
सोचा पास जा कर देखूं
फिर ख्याल आया
जब कुछ लेना ही नहीं
फिर मोह क्यूं पालूँ  |
बीते कल को याद किया
 जा पहुंची उस गली में
मैं खड़ी थी घर के सामने
जहां मनाए सारे  त्यौहार |
अचानक आँखें भर आईं
आज वह खाली था
कोई  नहीं था
जो मेरी राह देखता |
अब अकेले ही रहना है
 जानती हूँ फिरभी न जाने क्यूं
हर वर्ष की तरह
आज भी उदास हूँ |
आशा








07 अगस्त, 2014

फुलबाड़ी





 
फुलबाड़ी में
खिलते  गुलाब
चटकती कलियाँ
प्रातः काल का
अभिनन्दन करते
आदित्य की
प्रथम किरण का
झूम झूम स्वागत करते |
दिन व्यस्तता में जाता
फिर सूरज
अस्ताचल को जाता
सिमटती धूप
कलियाँ और फूल
रात्री में विश्राम करते |
फिर सुबह होते ही
अपनी सुगंध से
मन प्रफुल्लित कर देते
यह क्रम सदा चलता
जब तक जीवन
शेष न होता |

06 अगस्त, 2014

प्रभाव मन पर



कोरी रही स्लेट
कागज़ भी कोरा
बन न पाए अक्स
मन के आईने पर  |
मन के भेद
जब भी  उजागर होते
लिपि बद्ध  किये जाते
प्रथम दृष्टा वे ही होते |
अश्रुओं की बरसात से
अक्षर धूमिल होने लगते
कागज़ फट जाता
कॉपी के पन्ने सा |
स्लेट की लिखावट मिट जाती
जल से धुल जाती
वह कोरी ही रह जाती
कुछ नया लिखने के लिए |
मन पर अंकित चिन्ह न मिटते
 जो निशान रह जाते शेष
अमित छाप  मन पर छोड़ते 
धूमिल तक नहीं होते |
कभी शूल से चुभते
कभी प्यार से सहारा देते  
सुख दुःख में साथ खड़े
मन के मीत होते |
हर स्वप्न  प्रभावित करता
खुद ही अर्थ निकालना होता 
वे मन में जब तक रहते 
विचार  घुमढ़ते  रहते
आशा

04 अगस्त, 2014

मशीन और मानव









एक मशीन कलपुर्जे अनेक
तालमेल सब में ऐसा
वह सतत सेवा देती
पूरी क्षमता से कार्य करती |
धीरे धीरे पुर्जे घिसते
कार्यक्षमता प्रभावित होती
चाहे जब रुक जाती
चलने में नखरे लगाती |
समय समय पर सेवा चाहती
रखरखाव यदि अच्छा होता
ठीक ठाक बनी रहती
अधिक समय तक सेवा देती |
हाल मनुज का यदि देखें
बहुत साम्य दिखाई देता
उसे भी उपचार चाहिए
आये दिन अवकाश चाहिए |
एक शरीर अवयव अनेक
जब तालमेल आपस में रहता
चंचल चपल बना रहता
जीवन सहज सरल होता |
धीमी गति से वय  बढ़ती
पुर्जे धिसते टूट फूट होती
शरीर चकित थकित सा
सोचता यह क्या हुआ |
कार्य क्षमता धटने लगी
बीमारी खोज ली उसने
बुढापा चुपके से आता है
पर परिवर्तन बड़े लाता है |
बीमारी वृद्धावस्था की
 है आम सभी में
जिसे लग जाती है
जान ले कर ही जाती है |
उसे भी अकारथ  मशीन सा 
बेकार समझा जाता है
सामान्य जीवन के लिए
 अवांछित हो जाता है |