28 जुलाई, 2014

आवारा बादल

 
आवारा  बादल 
कहाँ से आया 
कहाँ जाएगा
किसी ने न जाना |
किस पर थी निगाह 
यह तो बता जाता
मन आंदोलित ना होता
अस्तव्यस्त न होता  |
होगा महरवान 
तभी तो बरसेगा 
अब कोई  बहाना न बनाना
अपना जलवा दिखाना |
मौसम बड़ा सुहाना 
बाहर निकले तब जाना
हरे भरे उपवन 
सरोवर जल से लबालब|
तेरी आवारगी
 थी एक बहाना 
 तुझे यहीं आना था
सब का संताप मिटाना था |


27 जुलाई, 2014

दोहे


 
माँ की ममता पुत्र पर ,बेटी देख रिसाय |
तेरा कैसा न्याय प्रभू,कुछ भी समझ न आय ||

यहाँ वहाँ क्या देखते ,जीवन छूटा जाय |
प्रभु सुमिरन करते रहो ,अंत भला हो जाय ||

जीव न जादू की छड़ी,छूते ही कुम्हलाय |
कठिन डगर पार करके ,फल तुरतही मिल जाय ||

जल अथाह समुन्दर में .कभी कमीं ना होय |
सूरज कितना भी तपे, जलनिधि सूख न पाय ||

मानस से जो प्यार करे ,कष्ट उसे ना सताय |
नियमित पाठ करे जितना ,जनम सफल हो जाय |
आशा

26 जुलाई, 2014

चिंता




आँगन में जल भरा
चिड़िया आती
दाना खाती पानी पीती
पंख डुबोती नहाती
जल्दी से उन्हें सुखाती
भूख उसे नहीं है
फिर भी मन चंचल
स्थिर नहीं है
कोई जान नहीं पाता
उसकी चिंता वही जानती
चाहती उड़ना
समीप के वृक्ष पर
जहां है उसका बसेरा
बच्चे राह देखते होंगे
चौंच में कीड़ा दबा कर
भरती उड़ान उस ओर
चूं चूं करते बच्चों को 
प्यार से खिलाती
 और समेट लेती उन्हें
अपने पंखों के नीचे
कोई जाने या न जाने 
 माँ का  दुलार
पर बच्चे जानते हैं
है माँ क्या उनके लिए |
आशा


25 जुलाई, 2014

अहम्






Photo
मैं आज अपनी ९०० वी पोस्ट आप सब तक पहुंचा रही हूँ |आशा है आपको पसंद आएगी |

गैरों से मेल अपनों से गिला
है बात बहुत अजीब सी
ना हो  तुम किसी की
ना कोई तुम्हारा मीत मिला |
 यह तुमने क्या किया
किस बात का बदला लिया
मैं निरीह देखता रहा
गिला शिकवा न किया |
क्यूं रूठीं कारण न बताया
यदि हाथ मिला लिया होता 
कुछ तो हल निकलता 
आलम उदासी का न होता |
जानता हूँ हो रूप गर्विता
अभिमानी हो  पाषाणी नहीं
पर निष्ठुर हो जान नहीं पाया 
तुम्हें पहचान नहीं पाया |
जब पीछे से कोई वार करेगा
तभी जान पाओगी
 कितना दुःख होता है
ऐसे किये व्यवहार से  |
वार चाहे जैसा भी हो
अस्त्र का या शब्दों का
शूल सा चुभता है
जीना दूभर होता है |
जब अहम् टकराते  है
प्रतिउत्तर नहीं सूझता
अस्तित्व सिमट जाता है
मन के किसी कौने में |
आशा

24 जुलाई, 2014

हरियाली

सावन का दर्द :-
जल बरसा
महाकाल प्रसन्न
मन सरसा |

सावन सूखा
सूखे नदी तालाव
खेत बेहाल |

प्यासी धरती
दरारें होने लगीं
नहीं बरखा |
आशा
 ·

22 जुलाई, 2014

ज़रा सोच कर देखो



कहती हूँ एक बात ज़रा सोच कर देखो 
ऐसी कोई  छड़ी नहीं जो मंहगाई हटाए 
ना  कोई  जादू  समस्या का निदान कर पाए
समय के साथ है सम्बन्ध उसका
धीमी गति है स्वभाव इसका
धैर्य है आवश्यक नियंत्रण के लिए
समग्र प्रयास ही  पहुंचेगा उस तक |
मंथर गति होती  उत्तम
किसी भी परिवर्तन के लिए
अति उत्साह नहीं सही कदम
समस्या के निदान के लिए |
कार्य जो कई  साल में न हो पाया
अल्प अवधि में हो कैसे संभव
यह न्याय नहीं लगता
किसी के आकलन के लिए  |
रुको ठहरो और हम कदम बनो
जब सहस्त्र कर्मठ हाथ एक साथ होंगे
सकारात्मक सोच को अंजाम देंगे
तभी सफलता मिल पाएगी
मंहगाई पर रोक लगेगी |