07 फ़रवरी, 2014

बीज भावों का


बीज भावों के बोए
शब्द जल से सींचे
वे वहीं निंद्रा में डूबे
बंद  आँखें न खोल सके
अनायास एक बीज जगा 
प्रस्फुटित हुआ
बड़ा हुआ पल्लवित हुआ
हर्षित मन बल्लियों उछला
कभी सोचा न था
यह अपनी आँखें खोलेगा 
उसका बढ़ना 
लगा एक करिश्मे सा
एक एक पर्ण उसका खेलता
वायु के संग झूम झूम
जाने कब कविता हो गया
सौन्दर्य से परिपूर्ण
उस पर छाया नूर
मन कहता देखते रहो
दूरी उससे न हो
आकंठ उसी में डूबूं
अनोखा एहसास हो
वह ऐसे ही फले फूले
 नहीं कोई  व्यवधान हो |

आशा 

06 फ़रवरी, 2014

सर्दी गयी वसंत आया

सुर्ख गुलाब से अधर तुम्हारे
अपनी ओर स्वतः खींचते
मोह बंध में बांधे रखते
ममता की भाषा समझते |
चाहत है उसे प्यार करूँ 
बेहिचक उसे स्वीकार करूँ 
पर विवेक रोकता है 
है यह एक छलावा 
इससे दूरी ही बेहतर है |

रंग वासंती चहु और बिखरा
मुखड़ा धरती का निखरा 
आ गयी वासंती पवन 
छा गयी आँगन आँगन |
आशा

03 फ़रवरी, 2014

हुआ वह दूर क्यूं ?



अनगिनत सवाल
अनुत्तरित रहते
जिज्ञासा शांत न होती
जब मन में घुमड़ते |
अशांत मन भटकता
अस्थिर बना रहता
कहीं टिक न पाता
रहता बेचैन रात दिन |
सोचती हूँ
 यह जन्म मिला ही क्यूं
यदि मिला  भी तो
दिमाग दिया ही क्यूं 
रखा संतोष सुख  से दूर क्यूं ?
रह गयी कमीं सबसे बड़ी
सब कुछ पाया
 पर संतोष धन नहीं |
कहावत खरी न उतरी
संतोषी सदा सुखी
अब यही कष्ट सालता है
हुआ वह दूर क्यूं  ?

02 फ़रवरी, 2014

मधुमास में

मुझे आप सब के साथ अपनी ८०० वी पोस्ट शेयर करना बहुत अच्छा लग
रहा है |आशा है आपको मेरी ये रचनाएं पसंद आएंगी ||
१-मन बावरा
खोज रहा गलियाँ
जहां खो गया |

२-यूं विलमाया
रमता गया वहां
मन मोहना |

३-प्रीत अभागी
कहीं मन का मीत
खो न जाए |


४-माया में लिप्त
मद मत्सर जागे
मोह छूटे ना |


५-वह खोजती 
उस मन का कोना 
जहां प्यार हो |

६-झीना आंचल
मदमस्त मलय
ले चली उड़ा |

7-उलझी लट
खुद से बेखबर
रूप अनूप |

८-आया बसंत
पीली सरसों फूली
धरा जीवंत |

९-मधुमास में
महुआ गदराया
हाथी है मस्त |

आशा





01 फ़रवरी, 2014

आया वसंत



पीले लाल रंगबिरंगे
पुष्प सजे वृक्षों पर
रंग वासंती छाया
धरती की  चूनर पर |
धरा सुन्दरी सजती सवरती
नित नवल श्रृंगार करती
राह प्रियतम की देखती
इस प्यारी  सी ऋतु में |
सारे  पर्ण  किलोल करते
मदमस्त मलय से चुहल कर
करते अटखेलियाँ पुष्पों से
वासंती रंग में रंग जाते |
चंचल चपल विहग
 आसमान में उड़ उड़ कर 
अपनी प्रसन्नता जाहिर करते
नव किश्लय करते स्वागत तब
इस अभिनव ऋतु का |
दृश्य वहीं ठहर जाता
मन की आँखों में छिप जाता
माँ सरस्वती का ध्यान कर
स्वागत वसंत का होता |
आशा

30 जनवरी, 2014

यह क्या ?


यह क्या कहा
कैसा सदमा लगा
मैं भूली ना |

लिखी किस्मत
 न विधाता ने मेरी
भूल किसकी |

सेतु बंधन 
एक सरिता पर 
दो कूल मिले |

लगता दाग 
दामन भविष्य का 
है दाग दार |

आसमान में
काले भूरे बादल
बरसे झूम |

अश्रु झरते
अधर हुए शुष्क
भीगी पलकें |

दुखित मन
हाल देखा देश का
कोई न हल |

जला अलाव
एहसास गर्मीं का
बचा सर्दी से |

आशा