27 नवंबर, 2013

तस्वीर स्वप्नों की



स्वप्नों की तस्वीर कैसे उतारूं
हैं इतने चंचल
 स्थिर रहते ही नहीं
ना ही आसान
कुछ पलों के लिए
उन्हें रोक पाना
 कोइ नया सुन्दर सा
 पोज दिलवाना
वे बारम्बार पहलू बदलते
कभी पूरी की पूरी
स्थिति ही बदल देते
कोइ वर्जना उन्हें
प्रभावित नहीं कर पाती
वे हैं घुमंतू
बस आते जाते रहते हैं
महफिल में बातें स्वप्नों की 
करना तो अच्छा लगता है
पर बिना प्रमाण वे
सब सतही लगते हैं
चंचल मन के साथ वे
रह नहीं पाते
यहाँ वहां भटकते हैं
कभी रंगीन कभी बेरंग लगते हैं |


25 नवंबर, 2013

खुद का कुछ भी नहीं




चला जा रहा सोच में डूबा
भीड़ से अलग हट कर
एक बूथ कई प्रत्याशी
नगण्य वोटिंग करवाने वाले
कई वोट डालने वाले
एक बिचारी छोटी सी
इलेक्ट्रोनिक वोटिग मशीन
कैसे चुनाव संपन्न होगा
बिना भेदभाव के |
अजब प्रजातंत्र है
कोई  भी स्वतंत्र नहीं यहाँ
प्रत्याशी से जब बात हुई
बड़ा दुखी था किसको बताए
अपनी व्यथा कथा
कितने पापड बेले थे
एक टिकिट पाने को
सभी दाव  पर लगा हुआ था
सफलता का  सहरा बांधने को |
मतदाता का सोच
ले चला गाँव की ओर
वह था नितांत अनिभिग्य
है कौन प्रत्याशी
किसने क्या क्या कार्य किये
बस चिन्ह  की पहचान थी
अपना अभिमत देने को
ऐसे भी थे लोग जो बोले
कई जीते कोई हारे
 क्या फर्क पड़ता है
हम तो इतना जानते हैं
जहां थे वहीं रहेंगे |
सब ऐसे बंधन में बंधे हैं
स्वतंत्र सोच भी उनका नहीं
वह भी उधार का है
खुद का कुछ भी नहीं |

23 नवंबर, 2013

मतदाता





यूं तो है अंगूठाटेक
पर सजग सचेत
दुनिया किधर जा रही है
हर नब्ज परखता है
हर कदम पहचानता  है
जानता है महत्व  वोट का
है वह भाग्य विधाता
नेता जी के भविष्य का
उत्सुक भी है कब
मशीन में बंद भाग्य
 नेता का होगा
जो भी नेता आता है
खुद को मददगार बताता
झुक झुक कर प्रणाम करता
फिर खोलता पिटारा वादों का
पर आज का मतदाता 
भ्रम नहीं पालता
तत्काल मांगे पूरी हों
यह लिखित में चाहता
आज जो भी मिल रहा है
पूरा उपभोग उसका करता
कल की क्यूं फिक्र करे
वह बदला लेना जान गया है
होगा कल क्या पहचान गया है |
आशा

21 नवंबर, 2013

प्रत्याशी






भीड़ तंत्र का एक भाग
घूम घूम करता प्रचार
पूर्ण शक्ति झोंक देता
चुनाव जीतने के लिए |
है वह आज का नेता
आज ही उतरा सड़क पर
लोगों से भेट करने
बड़ी बड़ी बातें करने |
वह थकता नहीं सभाओं में 
प्रतिपक्ष की पोल बता
झूठे वादे करते
अपनी उपलब्धियां गिनवाते |
है केवल एक ही चिंता उसे
जितनी पूंजी झोंक रहा है
अगले पांच वर्ष में
 कैसे चौगुनी होगी |
कुर्सी से चिपके रहने की युक्ति
देशहित को परे हटाती  
वह खोज रहा अपना भविष्य
आने वाले कल में |
आशा






18 नवंबर, 2013

क्षणिकाएं

शुभ घड़ी शुभ दिन 
शुभ वर्ष की बातें करते हो 
जो भी अशुभ हो रहा 
नजरअंदाज करते हो 
निश्प्रह क्यूं नहीं रहते 
क्यूं दुभांत करते हो |
(२)
प्यार का कोई मोहताज नहीं होता 
वह स्वयं ही उपजता है 
अपनीउपस्थिति दर्ज करा कर
फिर तिरोहित हो जाता है |
(३)
है वही सफल 
शिखर तक पहुँचने में 
जो है निर्भय निडर 
हलके से धक्के से 
नहीं जाता बिखर |