28 जून, 2017

हम किसीसे कम नहीं



आधे अधूरे समस्त अंग 
यदि एक अंग का छोटा सा भी भाग 
अनियंत्रित हो जाए 
मन विचलित हो जाए ! 
एक-एक अंग होता उपयोगी 
यदि उसका कोई भाग खराब होता 
तब शरीर पर 
बड़ा विपरीत प्रभाव होता ! 
और तो और स्वस्थ अंग का भी 
सुचारू रहना बाधित हो जाता ! 
विश्वास डगमगाता 
और यदि वापिस आता 
वह दबंगई न संजो पाता ! 
हर बार एक अंग के संतुलन खोने से 
दूसरा भी हार जाता ! 
लेकिन जब किसी दिव्यांग को 
सक्रिय सक्षम देखते हैं तो 
मन ही मन उसे सराहे बिना 
नहीं रह पाते ! 
और मन में विचार आता है 
जब ये सब सक्षम हैं 
हर कार्य करने में तो 
हम जैसे सामान्य व्यक्ति 
क्यों नहीं जीत सकते 
किसी भी कठिनाई को !
यह सोच ही मन में 
ऊर्जा भर जाती है ! 
उत्साह संचरित कर जाती है !


आशा सक्सेना 

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