16 अप्रैल, 2016

गागर


·

१-
कुए की ओर
गागर धर शीश
गोरिया चली |
२-
ठंडा जल है
हो गई आत्मा तृप्त
मटका धन्य |
३-
रोचक शैली
गागर में सागर
अच्छी लगती |
४-
रेशम डोर
चांदी के कलश हैं
उठ न पाएं |
५-
तपती धूप
मटका रीत गया
भरती कैसे |
आशा


13 अप्रैल, 2016

शिकायत

है शिकायत के लिए चित्र परिणाम
ए तकदीर मेरी 
है मुझे शिकायत तुमसे 
क्यूं असफल सदा रहता हूँ 
उसका बोझ लिए फिरता हूँ 
भाग्य मेरा नहीं चेतता
सुख से दूर मुझे करता 
हूँ बाध्य सोचने को 
ऐसा क्या गलत किया मैंने 
जो प्रतिफल भोग रहा हूँ 
सारे यत्न व्यर्थ हो गए 
मर मर कर जी रहा हूँ 
व्यथित हूँ अकारथ हूँ 
पृथ्वी पर भार हो गया हूँ 
अपना गम किससे बांटूं 
सोच हुआ है कुंद 
तकदीर मेरी
 तुम कब जागोगी 
कब तक आखिर
 सुप्त रहोगी 
यदि यही हाल रहा
 होगा अकारथ जीवन मेरा 
तुम्हीं बताओ मैं क्या करू
और कितनी परीक्षा लोगी |
मेरी  कठिनाई दूर करोगी
आशा

12 अप्रैल, 2016

चांदनी


 चाँद और चांदनी के लिए चित्र परिणाम

हूँ रौशनी तुम्हारी
मेरा अस्तित्व नहीं तुम्हारे  बिना
तुम चाँद मै चांदनी
यही जानती सारी दुनिया
प्रारंभ से आज तक
तुम मुझमें ऐसे समाए
अलग कभी ना हो पाए
साथ हमारा है सदियों पुराना
तुम जानते हो मै जानती हूँ
है यही एक सच्चाई
हमें जुदा करने के
 समस्त यत्न असफल रहे
तारे टिमटिमाते रहते
काली अंधेरी रात में
होने लगते धूमिल से
जब हम से मिलते
खिड़की से झांकता बालक
बहुत गौर से तुम्हें देखता
चौदह कलाएं देख तुम्हारी
प्रश्न तुम्ही से करता
तुम हर दिन तिल तिल बढ़ते हो
पूर्ण रूप धारण करते हो
तुमसे ही यह कैसी उजास
हूँ तुम्हारी पूरक
सारी धरा दूधिया होजाती
जब पूरणमासी आती
तुम अटखेलियाँ करते
जल की उत्तंग तरंगों से
मैं भी साथ तुम्हारा देती
पीछे न रहती
यही बात मन में रहती
है यह रिश्ता बहुत पुराना
जैसा है वैसा ही रहे
  तुमसे अलग न होने दे |
आशा