03 अगस्त, 2016

वे लम्हें



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वे लम्हें जो कभी 
साथ गुजारे थे
सिमट कर 
रह गए हैं यादों में
हैं गवाह
 उन जज्बातों  के
जो धूमिल
 तक न हुए हैं
मन मुदित
 होने लगता है
उन लम्हों में
 पहुँच कर
क्या वे लौट कर
 न आएंगे
मुझे सुकून
 पहुंचाने को 
हर याद है 
इतनी गहरी
उससे जुदाई
 मुश्किल है
हैं वे लम्हें 
 वेशकीमती
उनसे दूरी 
नामुमकिन है |
आशा

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