18 अप्रैल, 2016

आज है यह हाल कल न जाने क्या होगा


आज है यह हाल
कल न जाने क्या होगा
प्यासी धरती है
सूखे हैं ताल तलैया
जीवन हुआ बेहाल
बूँद बूँद जल का
रखना पड़ता है हिसाब
आज है यह हाल
कल न जाने या होगा
ह्रदय हुआ विदीर्ण धरा का
दरारें दीखतीं यहाँ वहाँ
थलचर जलचर
हैं परेशान हाल
बहुतों ने त्यागे प्राण
जल के बिना
सारी फसल चौपट हो गई
वर्षा के अभाव में
रिक्त पड़े खलियान आज
कल न जाने क्या होगा
वन में हरियाली तिरोहित हुई
पीले पत्तों का है अम्बार
अल्प वर्षा अत्यधिक विदोहन
कर रहा बेहाल
सारी समस्या
मानवजन्य या प्राकृतिक
है तो समस्या ही
आज है यह हाल तो
कल न जाने क्या होगा
तभी तो आवश्यकता है
बूँद बूँद जल संचय की
तभी कल सवर पाएगा
कष्टों का अम्बार न होगा |
आशा

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