12 अप्रैल, 2016

चांदनी


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हूँ रौशनी तुम्हारी
मेरा अस्तित्व नहीं तुम्हारे  बिना
तुम चाँद मै चांदनी
यही जानती सारी दुनिया
प्रारंभ से आज तक
तुम मुझमें ऐसे समाए
अलग कभी ना हो पाए
साथ हमारा है सदियों पुराना
तुम जानते हो मै जानती हूँ
है यही एक सच्चाई
हमें जुदा करने के
 समस्त यत्न असफल रहे
तारे टिमटिमाते रहते
काली अंधेरी रात में
होने लगते धूमिल से
जब हम से मिलते
खिड़की से झांकता बालक
बहुत गौर से तुम्हें देखता
चौदह कलाएं देख तुम्हारी
प्रश्न तुम्ही से करता
तुम हर दिन तिल तिल बढ़ते हो
पूर्ण रूप धारण करते हो
तुमसे ही यह कैसी उजास
हूँ तुम्हारी पूरक
सारी धरा दूधिया होजाती
जब पूरणमासी आती
तुम अटखेलियाँ करते
जल की उत्तंग तरंगों से
मैं भी साथ तुम्हारा देती
पीछे न रहती
यही बात मन में रहती
है यह रिश्ता बहुत पुराना
जैसा है वैसा ही रहे
  तुमसे अलग न होने दे |
आशा

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