27 मार्च, 2016

बंधन कच्चे घागों का

हर सुबह तुम्हीं से होती है 
वह तुम में खोई रहती है 
शाम न बीते तुम्हारे बिना 
हर आहट की  टोह लेती है 
निशा निमंत्रण जब देती 
अपने स्वप्नों में खोई रहती 
नहीं जानती है वह क्या 
है वजूद उसका क्या 
तुम्हारी जिन्दगी में 
फिर भी जानती है
है अधिकार तुम पर क्या 
उसे ही सम्पत्ती मान 
 ह्रदय में सजोए रखती है
यही उसे बांधे रखता 
दिवा स्वप्न सजाने में 
तुम में ही खोए रहने में 
भूल नहीं पाती वह दिन 
जब तुम से पहली बार मिली 
मन की कली कली खिली 
है कल्पनातीत वह बंधन 
कच्चे धागों का गठबंधन
वह तुम्हारी हो गई 
तुम में रम कर रह गई 
हो तुम्ही  सब कुछ उसके
वह अधूरी तुम्हारे बिना 
यही उसे याद रहा 
सात जन्मों का वादा रहा 
राज यही सफलता का 
किसी से छुप नही पाता 
उसे अनुकरणीय बनाता |



आशा






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