21 फ़रवरी, 2015

अधर में अटका



पहले दगा
फिर उम्मीदेवफ़ा
है कैसी फ़ितरत
या रव की रज़ा
अधर में ही लटक गया
न राम मिला
न  रहीम मिला
केवल दिखावा था 
या भावना अंतस की 
आज तक जान नहीं पाया 
ऊपर से बदनामी का साया 
प्यार के नाम पर 
आवारगी का ताज मिला 
मन मसोस कर रह गया 
उस राह पर चल कर
दिल छलनी हुआ
और कुछ न मिला
मिली गति त्रिशंकू की
आसमान  से गिरा
खजूर में अटका |

आशा


































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17 फ़रवरी, 2015

है व्यर्थ सब सोचना

प्रेम रंग में रंगी
कल्पना में खोई
है सत्य क्या भूल गई
भ्रमित हुई
 बहुत जोर से ठोकर खाई
तब भी न समझी 
गर्त में गिरती गई 
अश्रुपूरित नेत्र लिए 
अवसाद में डूबी 
अपना आपा खो बैठी
खुद को ही भूल गई 
यह तक न समझ पाई 
वह प्रेम था या वासना 
अब व्यर्थ है ये सब सोचना !