14 जुलाई, 2015

क्षणिकाएं

दो जिस्म एक जान 
यूं ही नहीं पाए 
है कीमती सलाह 
व्यर्थ यूं ही न जाए |

प्यार की सीड़ी  चढ़े थे 
थामीं बाहें थीं 
छोड़ने के नाम से 
कांपती वह आज भी |

आज आ बाहों में आजा
कल क्या हुआ उसे भूल जा
यदि क्रोध मन से न गया
सोच क्या होगा भविष्य अपना |


आया नहीं तेरा ख़त 
वह ताकती रही छत 
यदि तुझसे नहीं सहमत 
फिर करे क्यूं कवायत |

की तुझसे मुलाक़ात बड़ी शिद्दत से 
.हुई पूर्ण आस बड़ी मुश्किल से 
खुशियों का ठिकाना न रहा मिल कर तुझसे 
सुनने सुनाने का मौक़ा मिला मुझे दिल से |
आशा

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