27 जुलाई, 2015

कौन असली हकदार

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चहरे पर देख अभाव
आँखें रीती भाव विहीन
छेड़ गईं मन के तार
उदासी का कोई हल तो निकाल | 
कंचन काया मृतप्राय सी 
आया देन्य  भाव चहरे पर 
दीनता की अभिव्यक्ति 
मन में  चुभती  शूल सी |
दिल ने कहा सहायता कर 
पर दिमाग ने झझकोरा
 सोचना दूभर हुआ 
कहीं यह दिखावा तो नहीं ?
उलझन बढ़ने लगी 
करवटें बदलने लगी
क्या सच में है आवश्यक 
उसकी सहायता करना |
हो रहा है कठिन 
सत्य तक पहुँच पाना 
है यह आवश्यकता उसकी 
या तरकीब संवेदना पाने  की |
किसे सच्चा हकदार समझुँ
उपयुक्त समझूं सहायतार्थ 
जज्बातों  में बह कर
 यूँ ही  न  ठगी जाऊं |
जब भी भावुकता जागी 
बेरहमीं से ठगी गई 
अब विश्वास नहीं होता 
है कौन असली  हकदार
या कोई ठग  दरिद्र के भेष में |
आशा






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