13 मई, 2015

भावों के समुन्दर में


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भावों के समुन्दर में   
डुबकी लगाने की चाह में
घंटों से खडा था  
पर कदम नहीं बढ़ते
साहस नहीं जुटता
उर्मियों की तीव्र गति
वहां जाने नहीं देती
जैसे ही पैर बढाता  
बापिस ढकेल देती
चाहत डुबकी लगाने की
अनमोल रत्न खोजने की
उन्हें तराशने चमकाने की
बाधित सी हो जाती
तभी एक विकराल लहर
पैरों से टकराई
वे उखड गए
मैं घबराया पर सम्हला
और बह चला संग उसके
सागर की थाह पाने को
अब उत्साह है गर्मजोशी है
भावों का संग्रह जब होगा
सांझा करने का यत्न करूंगा |
आशा

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