24 मार्च, 2015

ज्ञान हारा प्रेम से



था राज्य कंस का
बेबस थे नर नार
त्राहि त्राही मची हुई थी
नगरिया मथुरा थी बेहाल |
कान्हां गए वहां
माता पिता को छुड़वाने
 कारागार से मुक्त कराने
बदला कंस से लेने |
हुई ब्रज  की गलियाँ सूनी
अभाव कृष्ण का खलने लगा
  न रही रौनक वहां
 और न कोई  उत्सव |
विरह वेदना में डूबी
कृशकाय गोपियाँ  होने लगीं 
अश्रुओं की बाढ़ में 
 तन मन अपना खोने लगीं |
कृष्ण के एक मित्र ने
नाम था जिनका उद्धव
 समझाने का उनको  बीड़ा
 अपने ऊपर ओढ़ा |
किया प्रस्थान गोकुल को
लिए ज्ञान का झोला
जितना भी वे समझाते 
कृष्ण का  दाइत्व बताते
ज्ञान की गंगा बहाते
गोप गोपियाँ सह न पाते  |
ज्ञान सारा धरा रह गया
किसी ने भी न सुनना चाहा
एक ही मांग थी उनकी
उनका कान्हा लौटा लाओ 
झूटा आश्वासन नहीं चाहिए
कान्हा को ले आओ
द्वेत अद्वेत से क्या लेना देना
कान्हां के बिन गोकुल सूना |
ज्ञान केवल सतही था
जड़ें प्रेम की  थीं गहरी
ज्ञान प्रेम से हारा
और तिरोहित हो गया |

आशा

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