09 अक्तूबर, 2014

वह बैठा निहारता




वह बैठा निहारता
पुष्पों  भरी क्यारियां 
टहनियां  झुक झुक जातीं
कुसुमों के भार से |
अनायास तेरा आना
रंग बिरंगे फूल चुनना
महावरी पैर बढ़ाना  
झुकना और सम्हलना |
आयल पायल बिछुए कंगना
गुनगुनाना मुस्कुराना
अद्भुद छवि तेरी
मन में उतरती |
मंद  मंद चलती बयार
आनन् का करती सिंगार
चन्द्र मुखी रूपसी
मन स्पन्दित करती |
मृणाल सी कोमल बाहें
 हाथों से फूल चुनती
 कुछ पुष्प  आँचल में आते
कुछ धरा को चूमते |
खुशी उन्हें पाने की 
उनमें ही रम जाने की 
मदिर मुस्कान तेरी
अंतस में सिहरन भरती |
प्रसन्न वदन उन्हें निहारती
भाव संतुष्टि का होता
तब प्यारी सी  छवि तेरी
मन में घर करती |
आशा

07 अक्तूबर, 2014

परिचालक





यह शोरशराबा गहमागाहमीं
इंगित जरूर करती
मानो तोड़ रही है मौन
सारे बंधन छोड़  |
आते जाते वाहन
उनका रुकना आगे बढ़ना
तीव्र ध्वनि भोंपू की
है यही जीवन की रवानी |
आवागमन वाहनों का
आते जाते  यात्रियों का
है कितना कठिन
 उसी ने जाना |
फिर भी सचेत मुस्तैद
कहीं भी कमीं नहीं
सदा व्यस्त दिखाई देता
पर क्या सच में ऐसा  होता |
यात्री अपना टिकिट  चाहते
 लाइन में आना नहीं चाहते
बहुत प्यार से समझाता
लाइन के लाभ गिनाता |
जब सीधी उंगली से
 घी न निकलता
रौद्र रूप अपना दिखलाता
टिकिट देना रोक देता |
आये दिन का यही काम
तब भी थकना नहीं जानता
घर से गाड़ी अड्डे तक
स्मित हास्य लिए घूमता |
आशा

05 अक्तूबर, 2014

दोषी कौन





अक्सर कहा जाता है कि पुरुष वर्ग महिलाओं को बहुत दबा कर रखता है | आये दिन महिलाओं को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहना पड़ती है |पर सच्चाई कुछ और ही बयान करती है |
         यदि निस्प्रह हो कर देखा जाए तब ही सच्चाई सामने आती है | सच तो यही है कि महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं | पहले भी सास–बहू, ननद-भाभी, देवरानी-जेठानी में आए दिन नोक झोंक
होती रहती थी | हर छोटी से छोटी बात का बतंगड़ बना दिया जाता था | एक दूसरे के विरुद्ध कान भरे जाते थे फिर भीषण धमाके के साथ घर में तलवारें भांजी जाती थीं |
       पर शायद तब शिक्षा का अभाव एक कारण था इसी से आपसी सम्बन्ध सहज नहीं रह पाते थे | अक्सर महिलाएं किसी की खुशी देख कर जलती थीं और बदले की भावना से प्रतिकार करती थीं |
          आज के युग में पढ़ने लिखने के बावजूद विचारों में रत्ती भर भी बदलाव उनकी सोच में नहीं देखने को मिलता | दूसरे की थाली में सदा ज्यादा घी दिखाई देता है |
चाहे जितने भी क़ानून बन जाएं, बड़े बड़े मंचों से महिला जागृति की बातें की जाएं पर अपने घर में झाँक कर कोई नहीं देखना चाहता | महिलाएं अपने बीते कल में ही जीती हैं जैसा व्यवहार अपने रिश्तेदारों से मिला वही व्यवहार दूसरों के साथ करना पसंद करती हैं | बार बार कुंठाएं उभरती हैं | यदि खुद ने कष्ट उठाए तो दूसरों की खुशी देख नहीं पातीं | मन में भरे जहर को उगले बिना चैन नहीं आता | सच है महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं |
आशा