01 मार्च, 2014

कई रंग



  1. सूर्य विमुख
    पर चंदा रौशन
    उसी ऊर्जा से |



    मेरी दो आँखें
    चाँद व सूरज से
    मेरे दो बेटे |

    की कलकल
    पहाड़ों में नदी ने
    स्वर मधुर |
     
    दृश्य सुन्दर
    हरा भरा पर्वत
    बहती नदी |


    सहेजे रिश्ते
    अंखियों के जल से
    धूमिल हुए |



    हैं रिश्ते ऐसे
    कटु होते या मीठे
    कैसे बताते |
    आशा



28 फ़रवरी, 2014

चिराग जला


रात भर चिराग जला
एक पल भी न सोया
फिर भी तरसा
 एक प्यार भरी निगाह को
जो सुकून दे जाती
उसकी खुशी में शामिल होती |
वह तो संतुष्टि पा जाता
किंचित स्नेह यदि पाता
दुगुने उत्साह से टिमटिमाता
उसी की याद में पूरी सहर
जाने कब कट जाती
कब सुबह होती जान न पाता |
पर ऐसा  कब हुआ
मन चाहा कभी न मिला
सारी शब गुजरने  लगी
शलभों  के साथ में |
आशा

26 फ़रवरी, 2014

सुबह हुई ही नहीं


आँखें क्यूं खोली जाएं
जब धूप खिली ही नहीं
उठने की बात कहाँ से आई
जब सुबह हुई ही नहीं  |

प्यार के भ्रम में न रहना
लगती है यह एक साजिश
प्यार आखिर हो कैसे
जब दिल की दिल से राह नहीं |

संभावना अवश्य दीखती
कहीं आग लगने की
जले हुए दिल से धुंआ निकलने की
वैसे तो सुबह हुई ही नहीं
आशा

24 फ़रवरी, 2014

सरिता तीरे

सरिता तीरे 
दो सूखे साखे वृक्ष 
है विडम्बना |

मैं और तुम
नदी के दो किनारे 
कभी न मिले |

मन बेचैन 
उफनती  नदी सा 
हुआ न शांत |

मन टूटा था
 नदी पर बाँध सा 
प्रेम न रहा |
 हुई ठूंठ मैं 
इंतज़ार पर्णों का 
हुआ प्रभात |
ना यह दिल
 है मेरा आशियाना
हूँ यायावर |
आशा