05 दिसंबर, 2014

सर्दी में


निष्ठुर लोग
असहनीय ठण्ड
जगह न दी

रात जाड़े की
इंतज़ार ट्रेन का
कम्पित तन |

दया न माया
कांपता रह गया
दुखित मन |

खुले बदन
ठंडी जमीन पर
सो रहा था |

बर्फीली हवा
वह सह न सका
आगई कज़ा |

ऋतु जाड़े की
महका है चमन
तेरे आने से |

ठंडी बयार
कपकपाता गात
जाड़ा लगता |
आशा

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