22 मई, 2014

रिश्ते का सत्य


जल में घुली चीनी की तरह
कभी एक रस ना हो पाए
साथ साथ न चल पाए
तब कैसे देदूं नाम कोई  
ऐसे अनाम रिश्ते को |
जल में मिठास आ जाती है
चीनी के चंद कणों से
होती है हकीकत दिखावा नहीं
पर स्थिति विपरीत यहाँ
रिश्ता बहुत सुदृढ़ दीखता
पर खोखला अंदर से |
दौनों में कितना अंतर है
पर जीवन का सत्य यही है
मतलब के सारे रिश्ते हैं
छलना का रूप लिए हैं |
क्षणभर के लिए बहकाते हैं
वास्तविक नजर आते हैं
तभी विचार आता है
क्या रिश्तों का सत्य यही है |
आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. कल 23/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (23.05.2014) को "धरती की गुहार अम्बर से " (चर्चा अंक-1621)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  3. आपकी इस रचना को आज दिनांक २२ मई, २०१४ को ब्लॉग बुलेटिन - पतझड़ पर स्थान दिया गया है | बधाई |

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  4. आज की स्वार्थपरक दुनिया में रिश्तों का सच शायद यही रह गया है ! बहुत सुंदर प्रस्तुति !

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  5. तो कैसे दे दूं नाम कोई
    ऐसे अनाम रिश्ते को---
    सही कहा---

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