03 मार्च, 2014

कभी पलट कर देखना



कभी पलट कर देखना
जहां हो वहीं ठहर जाओगे
किसी ने यदि नाम पूंछा
वह भी भूल जाओगे |
प्रेम रोग है ही ऐसा
दीवानगी की हद पार करता
सारी बातें भूल कर
खुद में ही सिमट जाता |
 वह कम नहीं किसी करिश्में से
जो भी इसमें खो जाता
सब कुछ अपना हारता
पर एक उपहार पाता |
आनेवाले जीवन में
यही बड़ा संबल होता
प्यार तो प्यार है
उसका कोई नाम न होता |
है छोटी सी बानगी
उसकी जादूगरी की
उसमें  खोते ही
 खुद को भूल जाओगे
फिर  लौट नहीं पाओगे |
आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम को सही अर्थों में परिभाषित करती बहुत ही सुंदर रचना ! अत्युत्तम !

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  2. सही शब्दों में प्रेम को परिभाषित हुआ है .....बहुत सुन्दर .....!

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (04-03-2014) को "कभी पलट कर देखना" (चर्चा मंच-1541) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ढाई अक्षर का प्रेम है , प्रेम बड़ा विस्तार .
    जो परिपूर्ण है प्रेम से , उसका ह्रदय उदार .

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    उत्तर
    1. ब्लॉग पर आने के लियें और टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

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  5. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आपका-

    जवाब देंहटाएं
  6. आ० और मैं क्या कहूँ , बस इतना हि कह रहा हूँ की - तारीफ करूं क्या उसकी जिसने आपसे ये रचना बनवाया , धन्यवाद
    ॥ जय श्री हरि: ॥

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