27 सितंबर, 2013

सार्थक जीवन

इस जिन्दगी में
 क्या रखा है
 कब बिखर जाए
कुछ काम ऐसे करो 
जीवन सँवर जाए 
जाने के बाद भी 
तुम्हें याद किया जाए
जीवन काल में
जो कुछ किया
यदि आधा अधूरा ही रहा 
नई पीढी उसे 
पूरा कर पाए
बार बार तुम्हारा
 अनुकरण कर पाए
 हर कदम पर
तुम्हारा स्मरण
 किया जाए
कोइ कभी तुम्हें
 भूल न पाए |
आशा




23 सितंबर, 2013

क्या करे



अपने आप में सिमटना
अंतर्मुखी होना
अब क्यूं खलता है
क्या यह कोई  कमीं है
पहले कहा जाता था
मुखर होना शोभा नहीं देता
चेहरे का नूर हर लेता
धीरे चलो धीरे बोलो
 लड़कियों के ढंग सीखो
बहुत कठिन था
अपने में परिवर्तन करना
तब अनवरत प्रयास  किये
अपना अस्तित्व ही मिटा दिया
नियमों पर खरा उतरने में
अब तसवीर बदल गयी है
कहा जाता है
कभी घर से तो निकलो
मिलो जुलो सर्कल बनाओ
पर उलझ कर रह गयी है 
दो तरह के नियमों में
पहले थी बाली उमर
खुद को बदलना संभव हुआ
पर अब अपना है सोच 
जीने का एक तरीका है
कैसे परिवर्तन हो
समझ नहीं पाती 
सोचते सोचते
अधिक ही थक जाती है
कोइ हल नजर नहीं आता |
आशा