23 अगस्त, 2013

क्यूं सुनाऊँ मैं


क्यूं सुनाऊँ मैं तुम्हें
उसकी व्यथा कथा
तुमने कभी उससे
प्यार किया ही नहीं |
कुछ अंश ममता का
उससे बांटा  होता
नजदीकियां बढ़तीं
यूं अलगाव न होता |
ऐसे ही नहीं वह
सबसे दूर हो गयी
प्यार की छाँव से
महरूम हो गई |
ममता तुम्हारी मात्र
एक छलावा थी
काश तुमने उसे
 नया मोड़ दिया होता |
इस तरह किरच किरच हो
वह शीशे सी
 ना टूटती  बिखरती
यदि तुमने उसे छला न होता |
 आई थी  रुपहली धुप सी
दस्तक भी दी थी
तुम्हारे दिल के दरवाजे पर
तब सुनी अनसुनी की |
देखा न एक क्षण  को उसे
स्नेह भरी निगाह से
हो कर  उदास बेचैनी लिए
वह ढली सांझ सी |
इन बातों में
 अब क्या रखा है
यह तो कल की
बात हो गयी |
प्यार की चाह में भटकी
गुमराह हो गयी
फूल की चाह में
काँटों से मुलाक़ात हो गयी |
आशा

20 अगस्त, 2013

राखी

(१)
यह शगुन साध का धागा 
किसी पर थोपा नहीं गया 
केवल प्यार का बंधन है 
यूं ही बांधा नहीं गया |
 (२)
रिश्ता तो रिश्ता है
हो चाहे बंद लिफाफे में
या राखी भाई की कलाई में
पर रहे सदा ही वरदहस्त
बहना के सर पर |
(३)
समय के साथ
सब बदल गया
पहले सा उत्साह
 भी है  अब कहाँ
है अब तो रस्म अदाई
मंहगाई की मार से
 गहन उदासी छाई  |
आशा


18 अगस्त, 2013

है आज सूनी कलाई



है आज सूनी कलाई
बहिन तू क्यूँ नहीं आई
कितना प्यार किया तुझको
फिर भी भूल गयी मुझको |
किस बात पर रूठी है
बताया तो होता
मैं सर के बल चला आता
तुझे लेने के लिए |
तेरी ममता की डोर
 इतनी कच्ची होगी
कभी सोचा नहीं था
तेरे बिना है त्यौहार अधूरा
कभी सोचा तो होता |
नहीं चाह फल मिठाई की
ना ही भेट उपहार की  
तेरी स्नेह भरी एक
 निगाह ही काफी है मेरे लिए |
छोटा हूँ सदा छोटा ही रहूँगा
तुझसे अलग ना जी पाऊंगा
केवल प्यार की है दरकार
वही है नियामत मेरे लिए |
आशा