19 दिसंबर, 2013

यह क्या हुआ



हरे भरे इस वृक्ष को
यह क्या हुआ
पत्ते सारे झरने लगे
सूनी होती डालियाँ |
अपने आप कुछ पत्ते
पीले भूरे हो जाते
हल्की सी हवा भी
सहन न कर पाते झर जाते
डालियों से बिछुड़ जाते |
डालें दीखती सूनी सूनी
उनके बिना
जैसे लगती खाली कलाई
चूड़ियों बिना |
अब दीखने लगा
पतझड़ का असर
मन पर भी
तुम बिन |
यह उपज मन की नहीं
सत्य झुटला नहीं पाती
उसे रोक भी
नहीं पाती |
बस सोचती रहती
कब जाएगा पतझड़
नव किशलय आएँगे
लौटेगा बैभव इस वृक्ष का |
हरी भरी बगिया होगी
और लौटोगे तुम
उसी के साथ
मेरे सूने जीवन में |

आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. आशा तो हरी रहती है ... पतझड़ आते हैं तो जाते भी हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  2. पतझड़ ही स्वागत करता है वसंत को--नए फुल नए किसलय को |
    नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)

    जवाब देंहटाएं
  3. कोमल भावनाओं से रची बसी इतनी सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिये अनेक बधाइयाँ ! बहुत ही सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (20-12-13) को "पहाड़ों का मौसम" (चर्चा मंच:अंक-1467) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया है आदरणीया
    आभार आपका-

    जवाब देंहटाएं

  6. कल 21/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं


  7. सुंदर रचना
    भावपूर्ण और प्रभावशाली
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर
    ज्योति

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: