11 जुलाई, 2013

किस पर श्रद्धा

कई मुखौटे लगे या नकाब से ढके
असली चहरे पहचाने नहीं जाते
दोहरा जीवन जीते लोग 
व्यवहार भी अलग अलग  
उजागर होती जब असलियत
उद्विग्न होते छटपटाते 
कितने कुरूप नज़र आते 
यदि पहले से जानते 
कितने कुत्सित भाव भरे हैं मन में 
एक भी शब्द सम्मान का 
लव तक न आता
दुनिया में जो चल रहा है 
ध्यान उस पर भी न जाता 
मन नफ़रत से न भरता 
दुनिया की हकीकत
 यदि जान ली होती 
चेहरे की असलियत 
पहचान ली होती 
इतने सदमें से न गुजरना पड़ता 
किसी अपने से सलाह यदि लेली होती 
यह दिन न देखना पड़ता
अब किसी पर ऐतवार नहीं होता 
हर जिस्म के अन्दर 
एक भूखा  भेडिया दिखाई देता 
सत्य क्या और असत्य क्या 
जानने की जिज्ञासा शांत नहीं होती 
चैन मन का हर लेती 
सभ्यता शर्मसार होती नजर आती 
गहरी व्यथा छोड़ जाती 
किसी पर श्रद्धा रखने का
मन नहीं होता |







18 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा विषय-
    सटीक तथ्य आभार दीदी-

    दुनिया की रंगीनियाँ, दहकती असली रंग |
    दिखा रंग असली जहाँ, होती पब्लिक दंग |
    होती पब्लिक दंग, नग्नता देख देख कर |
    होती श्रद्धा भंग, करे क्या दीदी रविकर |
    टेढ़ापन पहचान, नहीं कर पाती गुनिया |
    कर जाता वह हानि, ठगी जाती है दुनिया-

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  2. आदमी की असलियत पता ही नहीं चलता कुछ लोग मुखौटे लगाये रहते है.... अच्छी रचना ...

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  3. सही कहा आपने. सुंदर रचना.

    रामराम.

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  4. ये तो आज का सच है ... इसे भोगना ही है सबको ...

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  5. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

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  6. बिलकुल सत्य वचन ! आज के सच को बड़ी बेबाकी से उजागर किया है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  7. बिलकुल सच कहा..सार्थक प्रस्तुति

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  8. ब्लॉग प्रसारण पर अपनी रचना देख ली है |आभार आपका इस हेतु |
    आशा

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  9. दोहरा जीवन जीते लोग
    व्यवहार भी अलग अलग
    उजागर होती जब असलियत
    उद्विग्न होते छटपटाते
    कितने कुरूप नज़र आते
    यदि पहले से जानते
    कितने कुत्सित भाव भरे हैं मन में
    एक भी शब्द सम्मान का
    लव तक न आता



    sach kahaa...asha ji..aaapne....yahii sach he aajki duniyaa kaa.......bahut hii saarthak rchnaa...........dhanywaad..iske liye

    take care

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