22 मार्च, 2012

परोपकार करते करते

रात अंधेरी गहराता तम
 सांय सांय करती हवा 
सन्नाटे में सुनाई देती 
भूले भटके आवाज़ कोइ 
अंधकार  में उभरती 
निंद्रारत लोगों में कुछ को
 चोंकाती विचलित कर जाती 
तभी हुआ एक दीप प्रज्वलित 
तम सारा हरने को 
मन में दबी आग को
 हवा देने को 
लिए  आस हृदय में 
रहा व्यस्त परोपकार में
जानता है जीवन क्षणभंगुर 
पर सोचता रहता अनवरत
जब सुबह होगी 
आवश्यकता उसकी न होगी 
यदि कार्य अधूरा छूटा भी
एक नया दीप जन्म लेगा 
प्रज्वलित होगा 
शेष कार्य पूर्ण करेगा 
सुखद भविष्य की
 कल्पना में खोया 
आधी  रात बाद सोया 
एकाएक लौ तीव्र हुई 
कम्पित  हुई 
इह लीला समाप्त हो गयी 
परम ज्योति में विलीन हो गयी |

आशा






19 मार्च, 2012

जाना है चले जाना

वह राह दिखाई देती है 
जाने से किसने रोका है 
यह प्यार है कोइ सौदा नहीं
जाना है चले जाना 
पर लौट कर न आना 
अच्छा नहीं लगता 
हर बात दोहराना 
बेसिरपैर की बातों को 
दूर तक ले जाना 
कटुता  बढती जाएगी 
कभी कम न हो पाएगी 
साथ साथ  रहते रहते 
यदि  कम भी हुई तो क्या
जाने कब सर उठाएगी 
उठे हुए सवालों का 
सुलझाना इतना सरल नहीं 
जब कोइ समानता नहीं 
क्या लाभ लोक दिखावे का 
केवल नाम के लिए 
ऐसा रिश्ता ढोने का 
है  रीत जग की यही 
जो जैसा है बदल नहीं सकता
स्वीकार  करे  या न करे 
यह खुद पर निर्भर करता है
दो प्यार करने वालों का
हश्र यही  होता है |
आशा