20 दिसंबर, 2012

जब भी देखा उसे


जब  भी देखा उसे
चेहरा दर्प से चमकता था
थी अजीब सी कशिश
सब से अलग लगता था |
कानों में खनकती थी
आवाज मधुर उसकी
चाल भी ऐसी
सानी नहीं जिसकी |
था व्यक्तित्व ही ऐसा
मितभाषी और मिलनसार
पराया दर्द अपना समझ
तन मन से सेवा करता  था |
हर बात  पर उसकी
रुबाई या गजल बन जाती थी
यह एक शगल सा हो गया
मैं व्यस्त उसी में हो गया   |
उसी ने सूचना दी जाने की
अपने उद्देश्य को पाने की
खुश भी हुआ पर बिछडने से
ठेस लगी दिल को |
रुक न सका कह ही दिया
तुम्हारे लिए जाने कितनी
गजलें लिखी मैंने
आज मैं सौंपता तुम्हें |
नम आँखों से विदा किया
विमोह को बढ़ाने न दिया
उसने  भी एक  पन्ना न पलता
साथ ले कर चल दिया
मैं सोचता ही रह गया
था क्या विशेष उसमें
जो खुद को रोक न पाया
जज्बातों मैं बहता गया |
आशा



9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर पढ़ते पढ़ते हम भी लगा जज्बातों में बह गए ,इस सुन्दर रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आशा जी

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  2. जज्बातों की बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,

    recent post: वजूद,

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  3. सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें आशा जी ...!!

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  4. यही तो समझ में नहीं आता की मन किसीके लिए इतना आकर्षित कैसे हो जाता है ! सुन्दर रचना ! बहुत बढ़िया !

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  5. जज्बातों की खूबसूरत अभिव्यक्ति... बहुत सुंदर रचना... आभार आशाजी

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  6. कोमल भावनाओं की अति सुन्दर
    अभिव्यक्ति....
    :-)

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