07 नवंबर, 2012

सोच नहीं पाती


भाव आतुर मुखर होने को
दीखता वह सामने
फिर भी शब्द नहीं मिलते
अभिव्यक्ति को |
कोइ बाधा या दीवार नहीं
फिर भी हूँ उन्मना
कहीं कोई अदृश्य रोकता
कुछ कहने को |
यह भी स्पष्ट नहीं
भाव प्रधान हैं या उद्बोधन
उलझी हुई हूँ सुलझाने में
उठते विचारों के अंधड को |
बहुत कुछ है कहने को
पक्ष और विपक्ष में
पर लटक जाता है ताला अधरों पर |
उन्मुक्त भाव दुबक जाते हैं
बस रह जाता है मौन
मन समझाने को  |
कभी वह भी खो जाता है
घर के किसी कौने में
रह जाती हूँ मैं अकेली 
अहसासों में जीने को |
क्यूँ नहीं सदुपयोग
समय का कर पाती
रहती हूँ दूर -दूर
 जीवन की सच्चाई से |
बहुत दूर निकल जाती हूँ
सोच नहीं पाती मैं क्या चाहती हूँ
आग में हाथ जला कर
क्या साबित करना चाहती हूँ ?
आशा

14 टिप्‍पणियां:

  1. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  2. बहुत बढ़िया -एहसास मौन कोना ।
    पर छोडिये चिंता -जो होना है
    हो-मस्त रहिये ।

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  3. इन अमूल्य रत्नों को संजोने से बड़ा समय का सदुपयोग भला और क्या हो सकता है... गहन अभिव्यक्ति... आभार

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  4. गहन भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति..

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  5. बहुत सार्थक एवँ सशक्त प्रस्तुति ! अति सुंदर !

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  6. बहुत सार्थक एवँ सशक्त प्रस्तुति ! अति सुंदर !

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  7. बहुत गहन भावों के सागर में डूबती हुई पंक्तियाँ ये मन बांवरा कितना भोला है चाहता भी बहुत कुछ है पर हो नहीं पाता बहुत सुन्दर प्रस्तुति आशा जी दीवाली की शुभ कामनाएं

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  8. सुंदर रचना... कभी आना...http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

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  9. प्रेरक मर्मस्पर्शी. अभिव्यक्ति...................................................... अहसासों में जीने को | क्यूँ नहीं सदुपयोग समय का कर पाती रहती हूँ दूर -दूर जीवन की सच्चाई से | बहुत दूर निकल जाती हूँ सोच नहीं पाती मैं क्या चाहती हूँ आग में हाथ जला कर क्या साबित करना चाहती हूँ ?

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