19 जून, 2010

जीवन मेरा

जाने कितने सपनों से
अपनी रातों को सजाया मैंने
जब उनकी सच्चाई जानी
एक भी आँसू न बहाया मैंने
हर  आँसू है मोती जैसा
उसका मोल नहीं भूली
अनमोल मोतियों की माला से
अपना गला न सजाया मैंने
सारा वैभव छोड़ दिया
जब धरातल पर पैर रखे
सहज भाव से सारे रिश्तों को
जी जान से निभाया मैंने
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
जब भी सोचा दुःख पाया
जाने क्या खोया क्या पाया
अवसाद ने सिर उठाया
सपनों का मोल भी समझाया
तब आँखों से गिरा एक मोती भी
बहुत अनमोल नजर आया |


आशा

18 जून, 2010

लद्दाख

पिछले साल गर्मियों में लद्दाख जाने का मन बनाया |जम्मू से सुबह ८ बजे की फ्लाईट थी |जब हम एअर पोर्ट पहुंचे
कुछ मजदूर बड़ी बड़ी पोटलियां लिए हुए बैठे थे |अधिक ताज्जुब तो तब हुआ जब वे लोग भी हमारे साथ हवाईजहाज में लद्दाख जाने के लिए चढे |ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी लोकल बस में सफर कर रहे हों |कुछ ने तो अपनी गठरी भी अपने ही साथ रख ली थीं |
हवाईजहाज बहुत छोटा था |अब हम रन वे से ऊपर आसमान मे थे |खिड़की से बाहर का दृश्य बहुत ही सुंदर दिख रहा था |बादलों पर पड़ती सूर्य की किरणे,बर्फ से ढके पहाड़ किसी परी के देश की सैर का मजा दे रहे थे |
लगभग एक घंटे बाद हम लेह हवाई अड्डे पर थे | कम दबाव वाले वायु मंडल से सामंजस्य स्थापित करने के लिए
(acclimatization )कुछ समय रुकने के बाद होटल की ओर रवाना हुए |होटल बहुत साफ सुथरा था |पर कमरे में न तो कोई पंखा था न ही ऐ.सी .|जून का महीना था पर ठण्ड ऐसी थी कि दांत कट कटाने लगे|
वहाँ जितने भी लोग ठहरे थे लगभग सभी विदेशी थे |कुछ यूरोपियन्स से बात हुई |वे भी हम से मिल कर बहुत खुश हुए| काफी देर तक लद्दाख की चर्चा होती रही |उन लोगों के घूमने की व खाने की अलग से ब्यवस्था थी |
सुबह नाश्ते के बाद कमरे के सामने गेलरी में जा बैठे |वहां धूप थी |धूप इतनी तेज थी कि बदन जलने लगा और छांव में कपकपा देने वाली ठण्ड |बड़ा अजीब सा अहसास हुआ |होटल मालिक ने इनर लाइन परमिट और घूमने के लिए टाटा
सूमो की ब्यवस्था करवा दी थी |
सुबह होते ही लेह के jokhang &Spitak बौद्ध गोम्फा देखने के लिए चल दिए |स्पितक बौद्ध गोम्फा एक पहाड़ी पर होने के कारण चढ़ते समय कुछ अधिक समय लगा | वहां भगवान बुद्ध की एक बहुत विशाल प्रतिमा देखी |इतनी सुंदर प्रतिमा थी
कि उस पर से नजर ही नहीं हटती थी |उसी परिसर में देवी तारा और उनके २३ अवतारों के भी दर्शन किये |वहां का रख रखाव करने वाले एक बौद्ध से कई बातें जानने को मिलीं |जब हमने उसे कुछ देना चाहा उसने लेने से इंकार कर दिया |हमने दान पेटी में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये ,और सिंधु उदगम स्थल जाने के लिए नीचे उतरे |
सिंधु नदी का उदगम स्थल देखना भी एक बहुत मन मोहक सपना सा था |वहां पर नदी बहुत तीब्र गति से बहती है |
नदी पर बने पुल पर खड़े हो कर आसपास का नज़ारा देखना बहुत सुंदर अनुभव था |पुल पर असंख्य पताकाएं बंधी हुईं थीं |
पूछने पर ड्राइवर ने बताया कि जब कोई मानता की जाती है तब लोग कपड़ों पर लिख कर उन पताकाओं को वहां बांध जाते है |
और जब मानता पूरी हो जाती है ,उनको खोल कर नदी में प्रवाहित कर देते है |रास्ते में एक हरे घास के मैदान में " याक और जो" को चरते देख हमने ड्राइवर से उनकी जानकारी ली |उसने बताया कि याक का उपयोग परिवहन के लिए किया जाता है तथा जो को दूध के लिए पाला जाता है |"जो" एक cross -breed चौपाया है |लौटते समय नाम्बियार राजा का ९मंजिला महल भी देखा | उसका रख रखाव बहुत अच्छे ढंग से किया गया है |शाम होते होते हम अपने आज के अंतिम पड़ाव शांती स्तूप पर थे | ऊपर से लेह का दृश्य बहुत सुंदर लग रहा था |जब हम वापस लौट रहे थे रास्ते में मिलने वाले कुछ लोगों ने"जुले" कह कर अभिवादन किया ,ड्राइवर ने बताया कि यहाँ पर अभिवादन के लिए जुले कहा जाता है | हमने भी नमस्ते की जगह लोगों का अभिवादन जुले कह कर किया |
अगले दिन सुबह नुब्रा घाटी जाने के लिए तैयार हुए |हमारे साथ चार अन्य यात्री भी थे उनमें से तीन बोम्बे से आई हुई
शिक्षिकाएं थीं और एक तमिल सज्जन थे |जैस जैसे आगे बढने लगे अपने को चारों ओर से बर्फ के पहाड़ों से घिरा हुआ पाया |
हरियाली का दूर दूर तक नामोंनिशान नहीं था |इसी लिए तो लद्दाख को बर्फ का रेगिस्तान कहा जाता है |
कुछ समय बाद हम दुनिया की highest motorable road पर से गुजर रहे थे |सड़क की कुल ऊंचाई १८300 फीट
है |इसे खारडुंग-ळा के नाम से जाना जाता है |एक तरफ ऊंची बर्फ से ढकी पहाड़ी और सड़क के दूसरी ओर बर्फ से ढकी खाई |यहां तक कि सडक पर भी हल्की सी बर्फ की परत थी |जगह जगह मिलिट्री की चौकियां बनी हुई थीं |
मिलिट्री के लोगों का ब्यवहार बहुत आत्मीयता से भरा हुआ था |मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया |
एकाएक हमारी गाड़ी पीछे की ओर स्किट होने लगी |ड्राइवर जल्दी से नीचे उतरा और पहियों पर रोक लगाई |सावधानी से हमारे साथ के लोग भी उतरे |तमिल राम स्वामी तो फिसल ही गए ,और बर्फ की दीवार से टिक कर खड़े हो गये |
पीछे से एक मिलिट्री की जीप आरही थी |उसकी मदद से सड़क पार कर पाए और खाई में गिरते गिरते बचे |एक बहुत बड़ा
हादसा होते होते बचा |
जब नुब्रा घाटी पहुचे दिन के १२ बज रहे थे |दो नदियों शायोक और नुब्रा की छोटी छोटी सी धाराओं से बनी यह घाटी
बहुत हरी भरी है |वहां का बौद्ध गोम्फा और मंदिर देखे |फिर एह फार्म हाउस पर दो कुब्ब वाला ऊँट भी देखा |क्यों कि
शाम हो गई थी, हम एक विश्राम गृह में रुक गए |वहां दो भाई बहन उस विश्रामगृह की देख रेख करते थे |वे इतने स्नेह से मिले कि घर सा लगने लगा |रात को हमारे साथ के लोगों ने वहां के लोकल पेय "छंग" का भी रसास्वादन किया |
अगले दिन सुबह होते ही लेह के लिए यात्रा शुरू की |थकान इतनी होगई थी कि सारे दिन होटल में आराम किया |
शाम को वहां के छोटे से मार्केट में कुछ खरीदारी की |उस समय एक बहुत बड़ा बौद्ध लोगों का जुलुस भी देखा |
फिर सुबह होते ही Pangong lake जाने के लिए जीप में सबार हुए |सोचा कुछ खाने के लिए ले लिया जाए |एक होटल पर बन रहे पराठों को पेक करवा लिया| यह रास्ता बहुत ऊबड़ खाबड़ होने के कारण रास्ते में बहुत कठिनाई हुई |जाते समय सेनडूल्स भी देखने को मिले |पर जब झील पर पहुंचे ,सारी थकान चारों ओर बर्फ से ढंकी पहाड़ियों से घिरी झील देख कर एक दम तिरोहित हो गई |इस झील कि लम्बाई १३० किलोमीटर है |अघिकांश भाग चींन के अधिकार में है तथा शेष भाग भारत में है|यह १४००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है |इतना साफ पानी इससे पहले कभी न देखा था |कचरे का तो नामो निशान तक नहीं था |सच पृथ्वी पर स्वर्ग नजर आ गया | वहां बने बंकरों में मिलिट्री के लोग सुरक्षा हेतु रहते है |
बादल घिर आए थे अतः लेह लौटना ही उचित समझा |समयाभाव के कारण चुम्बकीय घाटी नहीं जा पाए |जब कोई वाहन इससे से गुजरता है ,वाहन की गति अपने ही आप धीमी हो जाती है | मौसम खराब होने के कारण उस दिन की फ्लाईट रद्द हो गई थी |कुछ लोग तो सड़क मार्ग से कारगिल होते हुए श्री नगर चले गऐ |पर हम दूसरे दिन अपनी फ्लाईट का इंतजार करते रहे |हमारी फ्लाईट तीन घंटे लेट थी |एरोड्रम पर समय काटने के लिए लोगों से बातें करने लगे |
बातों ही बातों में बहुत सी और जानकारियाँ मिलीं |जुलाई माह में सिन्धु महोत्सव में वहां के लोग अपनी अपनीं पारंपरिक
वेश भूषा में आते हैं और उस समय वहां तरह तरह के सांस्कृतिक आयोजन और खेल होते हैं |लद्दाख के प्रत्येक गांव में पोलो खेला जाता है पर हर जगह अपने अपने नियम होते हैं|हमने उनलोगों से "जुले" कह कर अभिवादन किया और कुछ समय बाद हम अपने २ गंतव्य की ओर चल दिए |उस यात्रा में बहुत अच्छा लगा |सोचती हूं एक बार वहां जाने का
और प्लान बना लें तो कितना अच्छा हो |
आशा

17 जून, 2010

मेरी चाहत

समझदार हूँ
अपना अस्तित्व है मेरा
मेरी सोच सबसे जुदा
यह भी कोई खता नहीं 
बदलाव समाज में चाहूँ
अपने ढंग से रहना चाहूँ
ना मैं  हूँ मोम की गुड़िया 
ना ही भेड़ बकरी
 हूँ देन आज के युग की 
मेरे भी हैं  अपने सपने 
उनको पूरा करना चाहूँ
ऐरे गैरे चाहे जैसे से
विवाह मैं न कर पाऊँगी
दान दहेज के दानव से
खुद को  दूर रखना चाहूँगी 
मन चाहा रिश्ता जब होगा
तभी उसे स्वीकार करूँगी |
बड़ा परिवार ढेर से बंधन
हर समय दबाने की चाहत
बात-बात पर रोका टोकी
यह  मुझे स्वीकार न होगी
मन को सब से दूर करेगी 
सास ननद के ताने सुनना
घुटन भरे माहौल में रहना
हर पल मर-मर कर जीना
है  मेरी फितरत नहीं 
यह सब मैं सह न सकूँगी
सहज भाव से जी न सकूँगी
ठेस यदि मन को पहुँची
सब के साथ रह न सकूँगी
पहले भी अकेले रही 
अब भी मैं स्वतंत्र  रहूँगी |
यदि मेरा पढ़ना लिखना
उनको नहीं सुहाता है
पर मेरा है  जीवन वही 
उससे गहरा नाता है
ऐसे विचार रखने वालों से
ताल मेल न हो पायेगा
उन्नति  मार्ग अवरुद्ध होगा
जीवन नर्क हो जायेगा
हूँ  आज की नारी 
अपनी अस्मिता मिटने न दूँगी
जाग्रत हूँ जाग्रत ही रहूँगी |


आशा

16 जून, 2010

एक नन्हा सा दिया


दीपक ने पूछा पतंगे से
मुझ में ऐसा क्या देखा तुमने
जो मुझ पर मरते मिटते हो
जाने कहाँ छुपे रहते हो
पर पा कर सान्निध्य मेरा
तुम आत्महत्या क्यूँ करते हो
भागीदार पाप का
या साक्षी आत्मदाह का
मुझे बनाते जाते हो
जब भी मेरे पास आते हो |
जब तक तेल और बाती है
मुझको तो जलना होगा
अंधकार हरना होगा |
यह ना समझो
मैं बहुत सशक्त हूँ
मैं हूँ एक नन्हा सा दिया
नाज़ुक है ज्योति मेरी
एक हवा के झोंके से
मेरा अस्तित्व मिट जाता है ,
एक धुँआ सा उठता है ,
सब समाप्त हो जाता है ,
आग ज्वालामुखी में भी धधकती है ,
रोशनी भी होती है ,
दूर- दूर तक दिखती है ,
बहुतों को नष्ट कर जाती है ,
कितनों को झुलसाती है ,
लावा जो उससे निकलता है
उसका हृदय पिघलाता है
और ताप हर लेता है
पर तपिश उसकी
बहुत समय तक रहती है
विनाश बहुत सा करती है
वह शांत तो हो जाता है
पर स्वाभाव नहीं बदल पाता
जब चाहे उग्र हो जाता ,
ना तो मैं ज्वालामुखी हूँ
ना ही मेरी गर्मी उस जैसी
मैं तुमको कैसे समझाऊँ|
मैं तो एक छोटा सा दिया हूँ
अहित किसी का ना करना चाहूँ
पर हित के लिए जलता हूँ
तम हरने का प्रयत्न करता हूँ
शायद यही नियति है मेरी
इसी लिए मैं जलता हूँ |


आशा

15 जून, 2010

आप जब भी मेरे सामने आती हैं

आप जब भी मेरे सामने आती हैं ,
अपनी पलकों को झुका लेती हैं ,
शायद कुछ कहना भी चाहती हैं ,
मन ही मन कुछ दोहराती हैं ,
मैं समझ के भी अनजान बना रहता हूँ ,
कभी निगाहें भी चुरा लेता हूँ ,
चुप्पी साध लेता हूँ ,
कहना चाहता हूँ बहुत कुछ ,
बात मुँह तक आ कर रुक जाती है ,
फिर सोचता हूँ कोई शेर लिखूँ ,
जिसे पढ़ कर आप ,
मेरे दिल को जान सकें ,
दिल की गहराई नाप सकें ,
कुछ आप भी कोशिश करें ,
कुछ पहल मैं भी करूँ ,
जिससे मन की बातों को ,
इक दूजे से कह पायें ,
मन को अभिव्यक्ति दे पायें |


आशा

14 जून, 2010

मान पाने का हक तो सबका बनता है

तुम मेरी हो तुम्हारा अधिकार है मुझ पर ,
लेकिन अपनों को कैसे भूल जाऊँ ,
जिनकी ममता है मुझ पर ,
उन सब से कैसे दूर जाऊँ ,
मैं उनका प्यार भुला न सकूँगा ,
अपनों से दूर रह न सकूँगा ,
क्यों तुम समझ नहीं पातीं ,
क्या माँ की याद नहीं आती ,
जब भी उनसे मिलना चाहूँ ,
कोई बात ऐसी कह देती हो ,
दूरी मन में पैदा करती हो ,
यह तुम्हारी कैसी फितरत है ,
नफरत से भरी रहती हो ,
वो तुम्हारी सास हुई तो क्या ,
वह मेरी भी तो माँ हैं ,
तुमको प्यार जितना अपनों से ,
मेरा भी तो हक है उतना ,
में कैसे भूल जाऊँ माँ को ,
जिसने मुझ को जन्म दिया ,
उँगली पकड़ी, चलना सिखाया ,
पढ़ाया लिखाया, लायक बनाया ,
सात फेरों में तुम से बाँधा ,
तुम्हारा आदर सत्कार किया ,
मान पाने का तो हक उनका बनता है ,
फिर तुमको यह सब क्यूँ खलता है ,
छोटी सी प्यारी सी मुनिया ,
मेरी बहुत दुलारी बहना ,
उसने ऐसा क्या कर डाला ,
तुमने उसको सम्मान न दिया ,
दो बोल प्यार के बोल न सकीं ,
उससे भी नाता जोड़ न सकीं ,
मैं उससे मिल नहीं पाया ,
मैंने क्या खोया तुम समझ न सकीं
केवल अशांति का स्त्रोत बनी
अब तुम्हारी न चलने दूँगा ,
जो सही मुझको लगता है ,
वैसा ही अब मैं करूँगा ,
जिन सबसे दूर किया तुमने ,
उन सब से प्यार बाँटना होगा ,
हिलमिल साथ रहना होगा ,
सभी का अधिकार है मुझ पर ,
केवल तुम्हारा ही अधिकार न होगा ,
तभी कहीं घर घर होगा ,
मेरा सर्वस्व तुम्हारा होगा |


आशा

एक मनचला

एक और आँखों देखा सच तथा उससे बुना शब्द जाल !
शायद आपको पसंद आए :-

जब तुम उसे इशारे करते हो ,
शायद कुछ कहना चाहते हो ,
कहीं उसकी सूरत पर तो नहीं जाते ,
वह इतनी सुंदर भी नहीं ,
जो उसे देख मुस्कुराते हो ,
उसे किस निगाह से देखते हो ,
यह तो खुद ही जानते हो ,
पर जब उसकी निगाह होती तुम पर ,
अपने बालों को झटके देते हो ,
किसी फिल्मी हीरो की तरह ,
अपना हर अंदाज बदलते हो ,
कभी रंग बिरंगे कपड़ों से ,
और तरह-तरह के चश्मों से ,
उसको आकर्षित करते हो ,
गली के मोड़ पर,
घंटों खड़े रह कर ,
बाइक का सहारा ले कर ,
कई गीत गुनगुनाते हो ,
या गुटका खाते हो ,
तुम पर सारी दुनिया हँसती है ,
तुम्हारी यह बेखुदी देख ,
मुझको भी हँसी आ जाती है |


आशा

13 जून, 2010

कलम

मैं कलम हूँ ,
गति मेरी है अविराम ,
तुम मुझे न जान पाओगे ,
जहाँ कहीं भी तुम होगे ,
साथ अपने मुझे पाओगे ,
जीवन में जितने व्यस्त हुए ,
तब भी न मुझसे दूर हुए ,
मेरे बिना तुम अधूरे हो ,
स्वप्न कैसे साकार कर पाओगे |


आशा