14 मई, 2010

अनमोल नज़ारा

गर्मी का मौसम और ठंडी बयार ,
झील का किनारा एक मदहोश शाम ,
सनोवर के पेड़ों की लम्बी होती छाया ,
पानी में हिलती डुलती जैसे कोई काया ,
है रंगीन फिज़ा ओर अनमोल नज़ारा |
पानी में दिखती हाउस बोट,
भाग जिसके लकड़ी से तराशे गये ,
बाहर और अन्दर का रख रखाव ,
उसमें चार चाँद लगाते हैं ,
अविस्मरणीय उसे बनाते हैं ,
पानी में घर और उसका अक्स ,
दोनों ही मन को लुभाते हैं |
जो लोग वहाँ ठहरते हैं ,
झील का नज़ारा देखते हैं ,
पा प्रकृति की गोद में ख़ुद को ,
अपने को धन्य समझते हैं |
उगता सूरज स्वर्णिम आभा ,
झील का मन मोहक नज़ारा ,
रंगों को कूची में ले कर ,
केनवास पर उसे उकेरते हैं |
बजरों में सजी दुकानों में ,
दूधिया रोशनी के साये में ,
दिखा रहे हर वस्तु सभी को ,
चाहत देने की लेने की ,
अपनी और खींच रही सबको ,
चहल पहल और गहमागहमी ,
सभी आकृष्ट हो जाते हैं ,
और खरीदार बन जाते हैं ,
आवश्यकता का सभी सामान ,
सब यहीं मिल जाता है ,
एक वृहद् बाज़ार नजर आता है |
व्यवहार शिकारे के मालिक का ,
अपनापन लिए हुए होता है ,
सब का ध्यान वे रखते हैं ,
सदा प्रसन्न वे दिखते हैं ,
वे कई बातें बताते हैं ,
अनेक संस्मरण सुनाते हैं ,
क्या पहले घटा क्या बीत गया ,
सारे पलों का हिसाब,
उनके होंठों पर होता है ,
मानों छोटे-छोटे मनकों को ,
कोई धागे में पिरोता है ,
बात चले यदि केशर की ,
केशर की क्यारी दिखाते हैं ,
असली ओर नकली केशर में ,
है क्या अन्तर समझाते हैं ,
घर से कहवा बनवा कर लाते ,
उसका स्वाद चखाते हैं ,
अपनापन अधिक दिखाते हैं |
कश्मीर की सुरम्य वादियाँ ,
चार चिनार की बहार ,
उस पर झील का आकर्षण ,
मन डल झील में खोता जाता है ,
धरती पर स्वर्ग नज़र आता है |


आशा

11 मई, 2010

यादें बचपन की


जब अतीत पर नजर पड़ी
भूली बिसरी यादों से जुड़ी
बचपन की याद सताने लगी
छुटपन की वे प्यारी यादें
निश्छल चंचल मीठी बातें
प्रथम वृष्टि की पहली बूँदें
खिली धूप में जल की बूँदें
मन प्रसन्न हो जाता था
आँगन में खेलना भाता था |
पानी में छप-छप और बरसातें
पन्ना फाड़ कॉपी से अपनी
कागज़ की छोटी नाव बनाना
उसको पानी में तैराना
साथ कश्ती के दूर तक जाना |
नाव यदि गल जाये तो
नाराज़गी मन की दिखलाना
हर एक बात याद आने लगी
फिर बचपन में पहुँचाने लगी |
फिर मन पहुँचा उस बगिया में
घंटो जहाँ खेला करते थे
झूलों पर झूला करते थे
कभी बेंच पर बैठे-बैठे
उड़ती चिड़िया देखा करते थे
धरती पर पड़े रंगीन पंख
कॉपी में सहेजा करते थे |
रंगीन पंख पत्थर और कागज़
बड़ा खज़ाना होते थे
बार-बार उनको दिखलाना
बस्ते में फिर उन्हें छुपाना
मन आह्लादित करता था
स्फूर्ति से मन भरता था |
पास ही एक छोटा तालाब
था जल से भरा रहता
वहाँ कई मछलियाँ रहती थी
वे भी मेरी परिचिता थीं |
बूँद हवा की लेने आतीं
कुछ क्षण सतह पर दिख जातीं
जल्दी से फिर डुबकी लेकर
पानी में नीचे बैठ जातीं
आगे पीछे ऊपर नीचे
तैर कर आगे बढ़ जाना
छोटा सा एक समूह बनाना
कैसे साथ रहा जाता है
सारी दुनिया को दिखलाना
मै भूल नहीं पाती बचपन
ऐसा था वो प्यारा जीवन
प्रथम पाठशाला जीवन की
कितनी बातें सिखा गई
सही राह दिखा गई |

आशा

10 मई, 2010

विश्वास

ऐ विश्वास जरा ठहरो ,
मुझसे ना नाता तोड़ो ,
जीवन तुम पर टिका हुआ है ,
केवल तुम्हीं से जुड़ा हुआ है ,
यदि तुम्हीं मुझे छोड़ जाओगे ,
अधर में मुझे लटका पाओगे ,
मेरा सम्बल कौन बनेगा ,
सारी विपदा कौन हरेगा ,
पूर्ण रूप से आश्रित तुम पर ,
तुम ही मेरे जीवन के धन ,
विश्वास यदि तुम खो जाओगे ,
मेरा सब कुछ ले जाओगे ,
मन का चैन तिरोहित होगा ,
अनास्था का समुंदर होगा ,
अडिग प्रेम के सारे बंधन ,
तार-तार हो जायेंगे ,
जीवन के अनेक रंग ,
सारे फीके पड़ जायेंगे ,
तुम प्रस्तर की मजबूत नींव ,
जीवन की बुनियाद तुम्हीं ,
सार्थक जीवन आश्रित तुम पर ,
सफल जीवन की माँग तुम्हीं ,
ऐ विश्वास यहीं ठहरो ,
मन में अविश्वास न भरने दो ,
वह मुझे नहीं जीने देगा ,
नहीं सत्य को सहने देगा |


आशा

09 मई, 2010

माँ

मातृ दिवस के उपलक्ष्य में ,
ममता का कोई मोल नहीं होता ,
हतभागा है वह जो इसे खो देता ,
माँ की ममता का कोई नहीं सानी ,
उसकी ममता है अथाह नहीं मैं अनजानी ,
उसके प्यार की थपकी ,
मुझे जब भी याद आ जाती हैं ,
आँखें नम हो जाती हैं ,
माँ की याद दिलाती हैं |


आशा
आप २१.१२.२००९ की पोस्ट माँ भी पढ़ें शायद आपको अच्छी लगे