07 सितंबर, 2010

क्या उचित क्या अनुचित

संबंध बनाए ऐसे लोगों से ,
कभी दूर रहते थे जिनसे ,
की चर्चा जिन बातों की ,
क्या विश्वास किया था पहले ,
धर्म ,जाति , भाषा ,प्रान्त ,
जाने क्या सोच लिया तुमने ,
पहले भी बहुत सोचते थे ,
पर अन्याय ना सह पाते थे ,
करते थे विरोध ,
हर असंगत बात का ,
उससे नफरत भी करते थे ,
तुम्हारी यही बातें और विचार ,
लाये मुझे निकट तुम्हारे ,
पर अचानक यह बदलाव ,
मेरी समझ से बहुत परे है ,
है किसका दबाव तुम पर ,
समाज का या परिवार का ,
कहने को बाध्य नहीं करूंगी ,
पर इतना अवश्य कहूंगी ,
अंतरात्मा की अनसुनी कर ,
दूसरों के अनुसार चल कर ,
प्राप्त तुम्हें कुछ ना होगा ,
कभी इस पर दृष्टिपात करना ,
गहराई से विचार करना ,
समाज उसी पर शासन करता है ,
कमजोर जिसे समझता है ,
साहस और शक्ति है जिसमें ,
उससे किनारा कर लेता है ,
साहस है भर पूर तुममें ,
शक्ति की भी कमी नहीं है ,
पर कुछ ऐसा है अवश्य ,
जो तुम्हें बाध्य करता है,
वही सब करने के लिए ,
अनुमति जिसकी नहीं देता ,
मन या मस्तिष्क तुम्हारा ,
सामाजिक होना बुरा नहीं है ,
परम्पराएं निभाना भी हैं ,
पर सारे नियमऔर परम्पराएं ,
न्यायोचित नहीं होतीं ,
और सही भी नहीं होतीं ,
जब विकृत रूप ले लेती हैं ,
उचित यही होता है ,
मुक्ति पा लेना उनसे ,
अन्यथा संकुचित विचार ,
मन मैं घर करते जाते हैं ,
चाहे जब परिलक्षित होते हैं ,
कूप मण्डूक बना देते हैं |

आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ को दर्शाती, सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. सामाजिक होना बुरा नहीं है ,
    परम्पराएं निभाना भी हैं ,
    पर सारे नियमऔर परम्पराएं ,
    न्यायोचित नहीं होतीं ,
    और सही भी नहीं होतीं ,
    जब विकृत रूप ले लेती हैं ,
    बहुत सार्थक और सशक्त रचना ! काश भटके हुए लोग इसे पढ़ें और प्रेरणा लें ! सार्थक पोस्ट के लिए बधाई !

    जवाब देंहटाएं

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